झालावाड़

विश्व गौरेया दिवस आज : भरोसा ऐसा कि हथेली पर चुगती है दाना, इनके कलरव से गूंजता है आंगन

हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली गौरेया गुम हो गई है। बिगड़ते पर्यावरण का असर इंसान के साथ-साथ पशु पक्षियों पर भी दिख रहा है।

2 min read
ȤæðÅUæð ·ð¤ŒàæÙÑ-1 âéÙðÜ ×ð´ Âÿæè Âýð×è âæðÙæÜè Šææ·¤Ç¸ ·¤è ãUÍðÜè ÂÚU »æñÚÔUØæ ç¿çÇ¸ØæÐ

घरों के छज्जे, आंगन या आसपास चहचहाने वाली चिरैया, गौरेया गायब सी हो गई है। संरक्षण के कई प्रयासों के बावजूद इनकी तादाद कम होती जा रही है। हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली गौरेया गुम हो गई है। बिगड़ते पर्यावरण का असर इंसान के साथ-साथ पशु पक्षियों पर भी दिख रहा है। सुनेल में गौरेया चिडिय़ा को संरक्षित करने का बीड़ा पिछले 10 साल से सोनाली धाकड़ ने उठा रखा है। उन्होंने बताया कि वह नियमित रुप से सुबह चिडिय़ों को दाना-पानी देती है। उनके आंगन में इको फ्रेंडली घौंसले बनवाकर पेड़ों की डालियों पर लटका रखे है।

भरोसा एक ऐसा शब्द है, जिसको जीतने में कई बार तो बरसों लग जाते हैं और यदि जीत लो तो जीवन में आनन्द के रंग भर जाते है। ऐसा ही झालावाड़ जिले के सुनेल कस्बे में रहने वाली पक्षी प्रेमी सोनाली धाकड़ ने किया। उन्होंने गौरेया और अन्य पक्षियों की सेवा कर भरोसा जीता। मेहनत तो हुई पर उसका परिणाम भी सामने आया। आज गौरेया, टिटहरी जैसे पक्षी उनकी हथेली पर दाना चुगते देखे जा सकते हैं।

घरों के छज्जे, आंगन या आसपास चहचहाने वाली चिरैया, गौरेया गायब सी हो गई है। संरक्षण के कई प्रयासों के बावजूद इनकी तादाद कम होती जा रही है। हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली गौरेया गुम हो गई है। बिगड़ते पर्यावरण का असर इंसान के साथ-साथ पशु पक्षियों पर भी दिख रहा है। सुनेल में गौरेया चिडिय़ा को संरक्षित करने का बीड़ा पिछले 10 साल से सोनाली धाकड़ ने उठा रखा है। उन्होंने बताया कि वह नियमित रुप से सुबह चिडिय़ों को दाना-पानी देती है। उनके आंगन में इको फ्रेंडली घौंसले बनवाकर पेड़ों की डालियों पर लटका रखे है।

घर के अन्य सदस्य भी निभाते है जिम्मेदारी

पक्षियों के प्रेम चलते सोनाला मुश्किल से ही कहीं जा पाती है। यदि कभी मजबूरी में जाना भी पड़ा तो घर के अन्य सदस्य जिम्मेदारी निभाते हैं। गौरेया बीमार या घायल हो जाती है तो वे पशु चिकित्सालय के कम्पाउंडर को इलाज करवाती है। सोनाली धाकड़ ने बताया कि निस्वार्थ भाव के साथ वे गौरेया चिडिय़ा सहित अन्य पशु-पक्षियों की सेवा में जुटी हुई है। इस कार्य में पति गोविन्दधाकड़ का भी सहयोग मिलता है।

संतरों के छिलकों से तैयार किया ईको-फ्रेंडली बर्ड फीडर

पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए पक्षी प्रेमी सोनाली धाकड़ ने संतरे के छिलकों से तैयार कर ईको फ्रेंडली बर्ड फीडर तैयार कर अपने घर के आंगन में बांध रखे है। उसमें नियमित चावल डालती है।

ऐसे बचाएं प्यारी गौरेया को

गौरेया को अपने घर और आसपास घौंसले बनाने दें। छत, आंगन, खिडक़ी, मुंडेर पर दाना-पानी रखें। घर के आसपास ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं। फसलों में रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक कीटनाशक प्रयोग करें। आर्टिफिशियल घोंसले लाकर घर की छत पर रख सकते हैं।

Published on:
20 Mar 2025 11:10 am
Also Read
View All

अगली खबर