कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के चार महीने 'चातुर्मास' कहलाते हैं, जिनमें विवाह, शादी जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।अब 12 नवम्बर 2024 को देवउठनी एकादशी पर फिर से शहनाई गूंजेगी।
देवशयनी एकादशी पर बुधवार को शहर सहित पूरे क्षेत्र में धर्म कर्म की बयार बही। शेखावाटी के लोहार्गल व गणेश्वर सहित अनेक जगह श्रद्धालु उमड़े। वहीं अब चार माह तक शादियां नहीं होगी। भड़ल्या नवमी का इस सीजन का आखिरी अबूझ सावा था। अब 12 नवम्बर 2024 को देवउठनी एकादशी पर फिर से शहनाई गूंजेगी। शादियाें का दौर शुरू होगा। पंडित दिनेश मिश्रा ने बताया कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी का पर्व मनाया गया। इसे हरिशयनी एकादशी व पद्मा एकादशी भी कहते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी का व्रत बुधवार को रखा गया। इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो गए। क्षेत्र के लोहार्गल के सूर्य कुंड में स्नान के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु के शयन में जाने की कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार चार महीनों तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में रहते हैं । कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के चार महीने 'चातुर्मास' कहलाते हैं, जिनमें विवाह, शादी जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
मिश्रा ने बताया कि सृष्टि के संचालक और पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु हैं। ऐसे में देवशयनी एकादशी के बाद भगवान पूरे चार महीने के लिए योग मुद्रा में चले जाते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयनकाल में जाने के बाद सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं, इसलिए चातुर्मास के चार महीनों में विशेषरूप से शिवजी की उपासना फलदाई कही गई है।