ऑनलाइन का दवाओं का खेल: ड्रग इंस्पेक्टर भी दुकानों से सैम्पल लेकर करवाते हैं जांच, एक ही पर्ची को अलग-अलग अपलोड कर मंगा रहे दवाइयां
जोधपुर। 50 प्रतिशत तक डिस्काउंट, सीधे घर बैठे डिलीवरी जैसे कई ऑफर दिए जा रहे हैं। ऑनलाइन फॉर्मेसी का मार्केट पिछले कुछ साल में काफी बढ़ रहा है। लेकिन इसके पीछे कई प्रकार की लापरवाही व उदासीनता भी सामने आ रही है। पहले तो यहां बिक्री पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। दूसरा गुणवत्ता के लिए कभी जांच तक नहीं होती। एक ही दवा की पर्ची को अलग-अलग फार्मेसी पोर्टल पर अपलोड कर दवाएं मंगवाई जा रही हैं। अब यह मुद्दा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री तक पहुंचा है।
शेडयूल एच और नारकोटिक्स श्रेणी की दवाएं बिना डॉक्टर की पर्ची के नहीं दी जा सकती हैं। यदि इसे ऑफलाइन किसी दुकान से खरीदा जाता है तो एंट्री होती है। इस एंट्री के बाद हर स्तर पर जांच होती है। ड्रग इंसपेक्टर व चिकित्सा विभाग की ओर से स्टॉक जांच व गुणवत्ता जांच के लिए समय-समय पर सैम्पल लिए जाते हैं। जबकि इसके उलट ऑनलाइन फार्मेसी में यह प्रावधान नहीं हैं। वहां न तो गुणवत्ता जांची जा रही और न ही बिक्री पर कोई नकेल है।
एक ही पर्ची कई प्लेटफार्म पर होती है अपलोड
ट्रोमाडोल, एल्बेल्डाजोल, ऑफ्लोसेक्सिन, पेंटाप्रेजोल सहित 500 से ज्यादा दवाओं के फॉर्मूले हैं, जो कि शेडयूल एच में हैं। यह दवाएं सबसे ज्यादा चलती भी हैं और उनका उपयोग ज्यादा होता है। अब जो डॉक्टर की पर्ची है, उसमें यदि 1 महीने की दवा लिखी है तो वह एक साथ तीन से चार ऑनलाइन फार्मा प्लेटफार्म पर अपलोड कर वहां से दवाएं मंगवा ली जाती हैं। ऐसे में स्टॉक जांच भी नहीं होती।
गुणवत्ता जांच तक नहीं
ड्रग इंस्पेक्टर को दवा दुकानों से संबंधित दवाओं की जांच के टारगेट दिए जाते हैं। इसमें संबंधित दवा व बैच नम्बर की जांच होती है। गुणवत्ता में खरा नहीं उतरने पर बैच नम्बर पर अमानक किया जाता है। ऑनलाइन दवा के लिए जांच का कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि इसका रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता है। यह दवा सीधे ऑनलाइन प्लेटफार्म से मरीज के घर पहुंच रही है। अब तक कोई सैम्पल भी नहीं लिया गया है। एडीसी मनीष गुप्ता बताते हैं जयपुर से जो डायरेक्शन मिलते हैं, उस लिहाज से दुकानों से सैम्पल लेते हैं।
एक्सपर्ट व्यू
ऑनलाइन दवा का स्टाॅक और दवा जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि ऑफलाइन दुकानों की नियमित जांच होती रहती है। इसमें ड्रग नियम तो टूटते ही हैं साथ ही मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ होता है। क्योंकि यदि कोई पुरानी और बेअसर दवा मरीज तक पहुंचती है तो उसकी जांच ही नहीं है। हम चिकित्सा मंत्री तक इस मामले को उठा चुके हैं।
- विपुल खंडेलवाल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, जोधपुर केमिस्ट एसोसिएशन