प्राचीन विरासत का प्रतीक है तिगंवा गांव, अष्टभुजी रूप में विराजी हैं मां दुर्गा, पूजन के लिए पहुंच रहे लोग
कटनी. जिले के बहोरीबंद विकासखंड में स्थित तिगंवा गांव ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व रखता है। इसका महत्व नवरात्र में और भी बढ़ जाता है, जब दूर से लोग मां कंकाली के दर्शन व पूजन के लिए पहुंचते हैं। यहां स्थित मां कंकाली का मंदिर 5वीं शताब्दी का बताया जाता है, जो जिले के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। जिला मुख्यालय से लगभग 55 किमी और बहोरीबंद से 5 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर ऐतिहासिक धरोहरों से समृद्ध है। तिगंवा, अमगवां और देवरी गांवों में स्थित यह मंदिर क्षेत्रीय आस्था और पुरातत्वीय धरोहर का अनूठा संगम है। मां कंकाली और मां शारदा की भक्ति के साथ-साथ मंदिर की अद्भुत स्थापत्य कला इसे ऐतिहासिक रूप से और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
मां कंकाली मंदिर गुप्तकाल की स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मूलत: पत्थरों से निर्मित है और इसका आकार 12 फीट 9 इंच वर्गाकार है। मंदिर की छत गुप्त शैली के अनुसार सपाट बनाई गई है। मंदिर के मुख्य द्वार पर दोनों ओर गंगा और यमुना की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो उस समय की विशेष निर्माण शैली को दर्शाती हैं। इस मंदिर का मूल स्वरूप विष्णु मंदिर था, जिसके अवशेष आज भी परिसर में देखे जा सकते हैं। मंदिर के गर्भगृह का व्यास लगभग 8 से 9 फीट का है। मुख्य द्वार के बाईं ओर एक शिलापट्ट पर कंकाली देवी की मूर्ति अंकित है, जबकि दाईं ओर मां काली की प्रतिमा बनी हुई है। इसी शिलापट्ट के नीचे भगवान विष्णु अनंत शेष पर विराजमान हैं, जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हो रहा है और उस पर ब्रह्मा विराजमान हैं।
मुख्य मंदिर के निकट एक अन्य मंदिर भी स्थित है, जहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा विराजमान है। स्थानीय लोग इसे मां शारदा मंदिर भी कहते हैं। इसका निर्माण पुराने मंदिरों के भग्नावशेषों से किया गया है। मंदिर परिसर में विभिन्न स्थानों पर प्राचीन मंदिरों के अवशेष और खंडित मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। दीवार पर विष्णु के नृसिंह अवतार की प्रतिमा अंकित है। मंदिर के एक स्तंभ पर कन्नौज के उमदेव नामक तीर्थयात्री का लेख लिखा हुआ है, जिसकी लिपि 8वीं शताब्दी की बताई जाती है।
मां कंकाली मंदिर से जुड़े कई रहस्य भी हैं। लोगों का कहना है कि मां का पूजन सुबह 4 बजे स्वयं ही हो जाता है। गांव वालों के अनुसार, जब सुबह मंदिर के पट खुलते हैं, तो मां शारदा का श्रृंगार और पूजन पूर्ण अवस्था में मिलता है, लेकिन यह कौन करता है, इसका रहस्य आज तक अनसुलझा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने तिगंवा को पुरातात्विक महत्व के कारण संरक्षित घोषित किया है। यह मंदिर प्राचीन स्मारक और पुरातत्वीय स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है।