राष्ट्रीय गणित दिवस के अवसर पर विषय विशेषज्ञ का कहना है कि अलग-अलग पद्धतियों से गणित सिखाने से तार्किक क्षमता बढ़ती है। शहर से गांव तक बच्चे अलग-अलग पद्धतियों से गणित सीख रहे है।
राष्ट्रीय गणित दिवस के अवसर पर विषय विशेषज्ञ का कहना है कि अलग-अलग पद्धतियों से गणित सिखाने से तार्किक क्षमता बढ़ती है। शहर से गांव तक बच्चे अलग-अलग पद्धतियों से गणित सीख रहे है।
स्कूलों में बच्चों की गणित यात्रा बेहद रोचक और प्रेरणादायी है। गांव से लेकर शहर तक बच्चे अलग-अलग पद्धतियों से गणित सीख रहे हैं। ग्रामीण स्कूलों में सीमित संसाधनों के बीच दीवारों पर लिखकर गणित सिखाने की परंपरा आज भी जीवित है। वहीं शहरी स्कूलों में आधुनिक तकनीक और अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक कार्यक्रमों के जरिए बच्चों को तेज और सटीक गणना की कला सिखाई जा रही है। गणित की यही विविधता बच्चों को न केवल संख्याओं से जोड़ रही है बल्कि उनके दिमागी विकास और तार्किक सोच को भी मजबूत बना रही है। वैदिक गणित से लेकर अबेकस तक, हर पद्धति बच्चों को गणित की कठिन समझ को सरल बनाने का मार्ग दिखा रही है। राष्ट्रीय स्तर पर गणितीय प्रतियोगिताओं में अपनी पहचान बना रहे हैं
-आनंद नगर स्थित सांदीपनि स्कूल में शिक्षक हरिदास तिरोल बच्चों को वैदिक गणित की पद्धति से गुणन खंड पढ़ा रहे हैं। वे बताते हैं कि वैदिक गणित में सरलतम तरीकों से लघुत्तमसमापवर्त्य(एलसीएम ) और महत्तम समापवर्तक ( एचसीएफ ) सिखाया जा सकता है। बच्चे डिस्पोजल पद्धति और टीएमएल सामग्री की मदद से गणना करते हुए गणित को खेल की तरह सीख रहे हैं। इस पद्धति से बच्चों में गणित के प्रति रुचि बढ़ रही है और वे कठिन सवालों को सहजता से हल कर पा रहे हैं।
हरिगंज में संचालित अबेकस क्लास में शिक्षक मनु चौधरी और अनुराग चौधरी बच्चों को मेंटल मैथ्स की कला सिखा रहे हैं। यह अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक कार्यक्रम है। इसमें बच्चों को आठ मिनट में जोड़-घटाव और गुणा के 200 सवाल हल करने की क्षमता देता है। पहले बच्चे अबेकस (गिनती का फ्रेम) से गणना सीखते हैं और धीरे-धीरे बिना अबेकस के मानसिक गणना करने लगते हैं। इस पद्धति से बच्चों की गणितीय क्षमता के साथ-साथ दिमागी विकास भी होता है।
शिक्षक प्रांजलि गंगराड़े ( आनंद नगर, सांदीपनि स्कूल ) सांदीपनि स्कूल में विज्ञान पढ़ाती हैं। उनका कहना है कि कई बार ग्रामीण परिवेश में सीमित संसाधनों के बीच बच्चों को गणित सिखाने के लिए दीवारों पर लेखन की पद्धति अपनाती हैं। वे स्कूल की दीवारों पर संख्याएं, आकृतियां और गणितीय सवाल बच्चों को अभ्यास कराती हैं। यह तरीका बच्चों को रोजाना दृश्यात्मक रूप से गणित से जोड़ता है और उन्हें संख्याओं की पहचान, जोड़-घटाव तथा आकृतियों की समझ विकसित करने में मदद करता है। खेल-खेल में गणित सीखते हैं।
तार्किक क्षमता बढ़ती है
गणित विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को अलग-अलग पद्धतियों से गणित सिखाना उनकी तार्किक क्षमता को बढ़ाता है। अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति, कलन, सांख्यिकी और प्रायिकता जैसी शाखाओं की समझ तभी विकसित होती है। जब बच्चे गणित को खेल और प्रयोग की तरह सीखें। यही विविधता उन्हें भविष्य में वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में आगे बढ़ने का आधार देती है।