Rajasthan News: सीओपीडी विश्व में मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। विश्व में हर वर्ष लगभग तीस लाख लोगों की मौत सीओपीडी से होती है। भारत में वर्तमान में लगभग चार करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं।
World COPD Day: महानगरों में वायु प्रदूषण एक चुनौती के रूप में सामने आ रहा है और आमजन के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है। दिल्ली जैसे महानगरों में तो स्कूल बंद करने पड़ रहे हैं। प्रदेश की राजधानी, अलवर, भिवाड़ी, कोटा आदि शहरों के भी हालात विकट हो रहे है। प्रदूषण, धूम्रपान के चलते सांस संबंधित रोगों से लोग ग्रसित हो रहे हैं। इनमें से प्रमुख है क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी (सीओपीडी)। यह बीमारी सांस की नलियों में रुकावट पैदा करती है।
सीओपीडी विश्व में मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। विश्व में हर वर्ष लगभग तीस लाख लोगों की मौत सीओपीडी से होती है। भारत में वर्तमान में लगभग चार करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। यदि समय रहते इलाज लिया जाए तो मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है।
श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. केके डंग ने बताया कि देश में ग्रामीण परिवेश व शहरों में सीओपीडी रोगियों की संख्या 5.6% व 11.4% है। वायु प्रदूषण भी सीओपीडी मृत्यु दर और रुग्णता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक अनुमान के अनुसार चूल्हे पर खाना पकाने और वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से देश में सालाना 9.25 लाख मौतें होती हैं। सीओपीडी में उच्चतम मृत्यु दर एक लाख में 111 राजस्थान और न्यूनतम मृत्युदर एक लाख में 18 नागालैंड में दर्ज की गई है।
मरीज को इन्हेलर्स और नेबुलाइजर दिए जाते हैं, कई बार कुछ दवाइयां भी दी जाती हैं। इनहेलर या पंप सबसे सुरक्षित एवं कारगर उपाय हैं।
बार-बार बलगम बनना
श्वास लेने में तकलीफ
लंबे समय तक खांसी रहना
छाती में जकड़न रहना
कोटा मेडिकल कॉलेज के श्वांस एवं अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉ. विनोद जांगिड़ बताते है कि सीओपीडी सामान्यत: 40 वर्ष की उम्र में होती है, लेकिन कुछ कम उम्र के लोगों में भी देखी गई है। सीओपीडी दो तरीकों से फेफड़ों को प्रभावित करती है। पहला फेफड़ों में छोटी श्वांस नालियों की दीवारों का नष्ट करना और दूसरा क्रोनिक ब्रोंकाइटिस जिसमें श्वास की नालियां सूज जाती है। इससे श्वांस लेने में रुकावट होने लगती है।
‘नो योर लंग फंक्शन’: नवंबर माह के तीसरे बुधवार यानी इस वर्ष 20 नवंबर को सीओपीडी दिवस मनाया जाएगा। इसकी थीम ‘नो योर लंग फंक्शन’ अर्थात अपने फेफड़ों की क्षमता को पहचाने है।