Weather Prediction: भारतीय मौसम विभाग (IMD) देशभर में मौसम की निगरानी के लिए सैकड़ों ऑब्जर्वेशन सेंटर, रडार स्टेशन और सैटेलाइट का उपयोग करता है।
बारिश कब होगी, कितनी होगी और कितने दिनों तक चलेगी? यह सवाल हर किसी के मन में आता है। खासकर किसानों और यात्रियों के लिए मौसम की सटीक जानकारी बहुत जरूरी होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मौसम वैज्ञानिक इतनी सटीक भविष्यवाणी आखिर कैसे कर पाते हैं? आइए जानते हैं कि बारिश का अनुमान लगाने की पूरी प्रक्रिया क्या है।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) देशभर में मौसम की निगरानी के लिए सैकड़ों ऑब्जर्वेशन सेंटर, रडार स्टेशन और सैटेलाइट का उपयोग करता है। इन माध्यमों से तापमान, हवा की दिशा, वायुदाब और वर्षा जैसी जानकारी लगातार इक्कट्ठा की जाती है। इन आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद कंप्यूटर मॉडल्स की मदद से अगले कुछ घंटों से लेकर कई दिनों तक का पूर्वानुमान तैयार किया जाता है। आज के डिजिटल युग में सैटेलाइट इमेजेस और डॉप्लर रडार मौसम की निगरानी में अहम भूमिका निभाते हैं। सैटेलाइट से वैज्ञानिक बादलों की बनावट, ऊंचाई और उनकी स्पीड को रिकॉर्ड करते हैं। वहीं रडार के जरिए यह पता लगाया जाता है कि बादलों में कितनी नमी है और वे किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इस डेटा के आधार पर बारिश की संभावना, समय और तीव्रता का अनुमान लगाया जाता है।
मौसम वैज्ञानिक मौसम के पैटर्न को समझने के लिए न्यूमेरिकल वेदर प्रेडिक्शन (NWP) मॉडल्स का इस्तेमाल करते हैं। ये मॉडल्स हजारों किलोमीटर तक फैले वायुमंडलीय आंकड़ों को सुपरकंप्यूटर में डालकर उनका विश्लेषण करते हैं। इससे यह पता चलता है कि हवा की दिशा में बदलाव, समुद्र का तापमान या प्रेशर में अंतर बारिश को कैसे प्रभावित करेगा। देशभर के क्षेत्रीय मौसम केंद्र (Regional Meteorological Centres) भी बारिश का स्थानीय पूर्वानुमान तैयार करते हैं। वे अपने क्षेत्र में मौजूद टेक्नोलॉजी से वास्तविक समय का डेटा जुटाते हैं और मुख्यालय को भेजते हैं। इसके बाद पूरे क्षेत्र का संयुक्त विश्लेषण किया जाता है, जिससे जनता को अधिक सटीक पूर्वानुमान मिल सके।
हाल के वर्षों में मौसम विभाग की टेक्नोलॉजी में काफी सुधार हुआ है। अब शॉर्ट टर्म (3–5 दिन) की भविष्यवाणियां पहले से कहीं अधिक सटीक साबित हो रही हैं। हालांकि, वायुमंडल की अनिश्चितता के कारण लंबे समय का पूर्वानुमान अब भी कुछ हद तक बदल सकता है।