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Space Science To Agricultural: अंतरिक्ष विज्ञान से कृषि क्रांति, प्राचीन ज्ञान से आधुनिक विकास तक

Space Science To Agricultural: प्राचीन भारतीय कृषि प्रणाली मौसम पर निर्भर न रहकर खगोलीय गणनाओं से संचालित थी। ग्रहों और सूर्य की गति के आधार पर ऋतुचक्र को समझा गया, जिससे उन्नत कृषि पद्धतियां विकसित हुईं।

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Apr 01, 2025
Indian Astronomy

Space Science To Agricultural: पश्चिमी विचारों और अंग्रेजी कैलेंडर में ढले हमारे समाज के बड़े हिस्से को शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि हमारे पूर्वजों ने खगोल विज्ञान के अध्ययन से खेती जैसी बेहद सामान्य प्रक्रिया को उन्नत और मौसम के अनुरूप बनाया। ऋतुचक्र को खगोलीय गणनाओं से आंकना खेती के विकास के लिए सबसे अहम खोज थी।

खेत को हर चार वर्षों में एक वर्ष विश्राम देने का सुझाव

साल के किस समय बारिश होगी, कब सर्दी आएगी और कब गर्मियां, यह सब हमारे पूर्वजों ने अंतरिक्ष में ग्रहों और सूर्य की गति और स्थिति को दर्ज करके बताना शुरू किया। इसने एक ऐसा कृषि चक्र बनाने में मदद दी, जिसने तमाम आपदाओं और विपदाओं के बावजूद भारतीय सभ्यता का अस्तित्व बनाए रखा। दूसरी ओर कृषि में संवत्सर आधारित ज्ञान भी अद्भुत ढंग से उपयोगी साबित हुआ। वराहमिहिर की 'बृहत्संहिता' में मौसम पूर्वानुमान के वैज्ञानिक सिद्धांत दिए गए।

नासा ने अभी बताया, जो हम हजारों वर्षों में सीख चुके थे

हाल ही में नासा ने यह सिद्ध किया है कि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पौधों के जल अवशोषण और वृद्धि को प्रभावित करता है। यह ज्ञान भारतीय कृषि ग्रंथों में हजारों वर्ष पहले दर्ज था।

ग्रंथों में कृषि और विज्ञान

ऋग्वेद में ही कृषि को सर्वोच्च कार्य बताया गया :
"अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः।"
यानी, जुआ मत खेलो, कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ।

"कृषिर्धन्या कृषिर्मेध्या जन्तूनां जीवनं कृषि।"- महर्षि पाराशर ने लिखा

उन्होंने इसे मानव जीवन का आधार बताया। उनके ग्रंथ 'कृषि पाराशर' में अच्छे बीज की पहचान, बुआई की विधि, सिंचाई के सही तरीके और भूमि को स्वस्थ रखने के उपाय भी विस्तार से बताए गए। खेत को हर चार वर्षों में एक वर्ष विश्राम देने का सुझाव भी दिया ताकि उसकी उर्वरता बनी रहे।

मिश्रित खेती का सिद्धांत भी भारतीय कृषि शास्त्रों में वर्णित था

वृक्षायुर्वेद के रचयिता सुरपाल बताते हैं कि कुछ फसलें परस्पर पूरक होती हैं और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। यही कारण है कि आज बस्तर के कोंडागांव में काली मिर्च को ऑस्ट्रेलियाई टीक जैसे ऊंचे वृक्षों के साथ उगाकर उसकी गुणवत्ता और पैदावार को चार गुना तक बढ़ाया जा रहा है।

हमारे पूर्वजों ने कहा है

"कृषिर्न जीवनस्य मूलं, धात्र्याः सौंदर्यमेव च।" अर्थात, कृषि ही जीवन का मूल है और धरती माता का सौंदर्य है।

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