लखनऊ

‘नाम-आज़ाद, पिता का नाम स्वतंत्रता’ जब चंद्रशेखर का जवाब सुनकर भड़क गए थे जज; सुनाई थी ये कठोर सजा

ChandraShekhar Azad: स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त में अब कुछ ही दिन बचे हैं। आपको बताते हैं चंद्रशेखर आजाद से जुड़ा किस्सा, जब जज ने उनको कठोर सजा सुनाई थी।

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Aug 05, 2025
चंद्रशेखर आजाद और जज से जुड़ा किस्सा। फोटो सोर्स- पत्रिका न्यूज

ChandraShekhar Azad: स्वतंत्रता दिवस नजदीक है। आपको बताते हैं स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद से जुड़ा वो किस्सा जब उनको 15 बेंत मारने के आदेश दिए गए थे।

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15 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर

23 जुलाई, 1906 को चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म हुआ था। चंद्रशेखर आज़ाद का पूरा नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी था। मात्र 15 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया था। बंबई से लौटने के बाद वह बनारस के संस्कृत के एक विद्यालय में रहने लगे। उस समय 'असहयोग आंदोलन' महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरे जोर-शोर से चल रहा था।

कई जगहों पर दिया था आज़ाद ने धरना

कांग्रेस के द्वारा बनाए गए युवा संगठनों से इस दौरान चंद्रशेखर आज़ाद जुड़ गए थे। उन्होंने ना केवल शराब की दुकानों पर धरना दिया बल्कि और भी कई धरना प्रदर्शनों में भाग लिया। जिसके बाद उनको सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी के आरोप में पकड़ा गया। जब उनको मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया तो यहां कुछ ऐसा हुआ कि वह चंद्रशेखर आज़ाद बन गए।

15 बेंत मारने की सुनाई गई थी सजा

इतिहासकार अपर्णा वैदिक कि किताब Waiting for Swaraj: Inner Lives of Indian Revolutionaries (2021) के मुताबिक, जब चंद्रशेखर से जज ने उनका नाम और उनके परिवार के बारे में पूछा तो उन्होंने अपना नाम आज़ाद बताया। वहीं उन्होंने पिता का नाम स्वतंत्रता बताया। इसके अलावा उन्होंने जज को बताया कि उनके घर का पता जेल की कोठरी है। हालांकि चंद्रशेखर का ये जवाब सुनकर जज भड़क गए और उनको 15 बेंत मारने के आदेश दिया गया।

चंद्रशेखर ने अपने ब्राह्मण जाति वाले नाम को जेल से रिहा होने के बाद त्याग दिया। साथ ही आज़ाद की उपाधि धारण कर ली। इस दौरान उन्होंने कभी भी जिंदा अंग्रेजी हुकूमत के हाथ नहीं आने का भी संकल्प लिया।

27 फरवरी, 1931 को आज़ाद को पुलिस ने घेरा

लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की योजना दिसंबर, 1928 में आज़ाद ने बनाई और योजना को उसके अंजाम तक पहुंचाया। राजगुरु और भगत सिंह ने सॉन्डर्स को गोली मारी। इस दौरान उनका पीछा कर रहे एक पुलिस कॉन्स्टेबल को आज़ाद ने पीछा कर मार गिराया। आज़ाद 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने साथी क्रांतिकारी सुखदेव से मिलने जा रहे थे। इस बात की खबर पुलिस को मिल गई और उन्हें पुलिसकर्मियों ने घेर लिया।

आज़ाद का संकल्प था कि वह कभी भी जीवित नहीं पकड़े जाएंगे इसलिए उन्होंने खुद के सिर पर गोली मार ली थी। जिस पार्क में उनकी जान गई वह पार्क 'आज़ाद' के नाम से जाना जाता है।

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