लखनऊ

यूपी में उगते सूर्य को अर्घ्य देकर संपन्न हुआ छठ महापर्व, लखनऊ में बारिश के बीच पूजा, वाराणसी में जमकर आतिशबाजी

4 दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया। सुबह महिलाओं ने सूप में फल-फूल और प्रसाद सजाकर नदी में उतरकर भगवान सूर्य अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। इसी के साथ 36 घंटे का कठोर निर्जला व्रत संपन्न हो गया।

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Oct 28, 2025
लखनऊ में छठ महापर्व की भव्य आस्था, उगते सूर्य को अर्घ्य देकर हुआ व्रत का समापन (फोटो सोर्स : file photo, Ritesh Singh )

Lucknow Chhath 2025: हल्की बूंदाबांदी, बादलों से ढका आसमान और ठंडी हवाओं के बीच भी श्रद्धा की ज्योति मंद नहीं पड़ी। राजधानी लखनऊ के गोमती तट पर स्थित लक्ष्मण मेला मैदान और अन्य घाटों पर मंगलवार सुबह छठ महापर्व का पावन समापन हुआ। बारिश के बावजूद हजारों श्रद्धालुओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर 36 घंटे का निर्जला उपवास पूरा किया। छठ व्रतियों की आस्था का ऐसा नज़ारा था कि बूंदाबांदी भी उनके कदम नहीं रोक सकी। महिलाएं सिर पर दऊरा (बांस की टोकरी) लेकर घाट की ओर बढ़ती रहीं, उनके साथ परिजन गीत गाते और जयघोष करते चलते रहे- “कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…”। पूरा वातावरण भक्ति, संगीत और श्रद्धा से सराबोर रहा।

बारिश के बीच उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

सोमवार रात से ही राजधानी में हल्की बारिश का दौर जारी है। सुबह अर्घ्य के समय भी बूंदाबांदी थमी नहीं। बावजूद इसके श्रद्धालुओं की भीड़ में कोई कमी नहीं आई। लक्ष्मण मेला मैदान, झिलमिल तट, कुकरैल तट, इंदिरा नहर, हुसैनाबाद तालाब सहित शहर के छोटे-बड़े तालाबों और जलाशयों पर श्रद्धालु सुबह चार बजे से ही जुटने लगे थे। सड़क से लेकर घाट तक हर तरफ छठी मैया के गीत गूंज रहे थे।

उगते सूर्य को अर्घ्य देकर हुआ व्रत का समापन

मंगलवार की सुबह लगभग 6:18 बजे सूर्योदय का समय था। हालांकि, आसमान बादलों से ढका होने के कारण भगवान सूर्य के दर्शन नहीं हो सके, फिर भी श्रद्धालुओं ने उसी समय के अनुसार अर्घ्य अर्पित किया। छठ व्रतियों ने गोमती नदी में उतरकर उगते सूर्य की दिशा की ओर मुख करके जल चढ़ाया। महिलाए दोनों हाथ जोड़कर सूर्यदेव से परिवार की सुख-समृद्धि और संतानों की दीर्घायु की प्रार्थना करती रहीं। जैसे ही पूजा संपन्न हुई, घाटों पर “जय छठी मैया! जय सूर्य देव!” के नारे गूंज उठे। इसके साथ ही व्रतियों ने 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास पूरा किया। व्रतियों ने अर्घ्य देने के बाद घर लौटकर परिवार के साथ ठेकुआ, पूड़ी-कद्दू, और चने की दाल का प्रसाद ग्रहण किया।

36 घंटे का कठिन व्रत

छठ महापर्व नारी शक्ति और संयम का प्रतीक माना जाता है। व्रती महिलाएं दो दिनों तक बिना अन्न और जल ग्रहण किए सूर्य उपासना करती हैं। यह पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। इस बार छठ पूजा का मुख्य दिन 27 अक्टूबर (सोमवार) को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और 28 अक्टूबर (मंगलवार) को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सम्पन्न हुआ। लखनऊ की व्रतिन सुनीता देवी, जो पिछले 12 वर्षों से छठ व्रत कर रही हैं, कहती हैं कि बारिश हो या ठंड, छठी मैया के प्रति श्रद्धा में कभी कमी नहीं आती। यह व्रत सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि जीवन का अनुशासन और परिवार की मंगल कामना का पर्व है।”

भक्ति और लोक संस्कृति का संगम बना लखनऊ

लक्ष्मण मेला मैदान में सजाए गए अस्थायी पंडाल भक्ति गीतों गूंजते रहे। छठी मैया के भजनों पर महिलाएं ताल से ताल मिलाकर झूमती रहीं।

प्रशासन की चौकसी और इंतजाम

बारिश के बावजूद प्रशासन ने घाटों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए। लगभग 300 से अधिक पुलिसकर्मी और 200 होमगार्ड तैनात रहे। गोमती नदी में NDRF और जल पुलिस की टीमें मोटर बोट से गश्त करती रहीं। नगर आयुक्त गौरव कुमार ने बताया कि बारिश के बावजूद सफाई और सुरक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान रखा गया। सभी घाटों पर रोशनी, बैरिकेडिंग और चिकित्सकीय सहायता की व्यवस्था थी। नगर निगम ने घाटों पर टेंट, प्रकाश व्यवस्था और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र बनाए। बारिश के कारण जहां कुछ जगह कीचड़ हुई, वहीं निगम कर्मियों ने तुरंत सफाई कर स्थिति संभाली।

ट्रैफिक व्यवस्था रही चुनौतीपूर्ण

छठ के अवसर पर सुबह चार बजे से ही घाटों की ओर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी। लक्ष्मण मेला मार्ग, हजरतगंज, कपूरथला, डाली बाग, और अलीगंज की ओर से आने वाले मार्गों पर वाहनों की लंबी कतारें लग गईं। ट्रैफिक पुलिस ने जगह-जगह डायवर्जन लागू किया। कई श्रद्धालुओं ने कहा कि बारिश में भी व्यवस्था ठीक रही और कहीं कोई बड़ी असुविधा नहीं हुई।

वाराणसी में नाचते-गाते किन्नर घाट पहुंचे

काशी के 88 घाटों पर आस्था का अद्भुत नज़ारा देखने को मिला। करीब तीन लाख महिलाओं ने सूप सजाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। घाटों पर भक्त भगवान शिव और माता पार्वती का रूप धारण किए नजर आए, तो वहीं किन्नर समुदाय ने गीत-संगीत और नृत्य के साथ श्रद्धा व्यक्त की।

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