लखनऊ

RakshaBandhan: धर्म से परे रक्षाबंधन: 35 साल से हिंदू बहनें बांध रही हैं मुस्लिम भाई को राखी

Raksha Bandhan Beyond Religion: लखनऊ के दिलकुशा गार्डन स्थित दरगाह हजरत कासिम शहीद बाबा पर 35 साल से चल रही हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल इस बार भी कायम रही। रक्षाबंधन पर अनीता और विमला ने मुस्लिम भाई जुबेर अहमद को राखी बांधी, यह बताते हुए कि धर्म अलग हो सकते हैं, मगर दिल हमेशा जुड़े रह सकते हैं।

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Aug 09, 2025
35 साल से निभ रहा है भाईचारे का बंधन फोटो सोर्स : Patrika

Raksha Bandhan Hindu Muslim Unity: लखनऊ में इस बार भी रक्षाबंधन का पर्व केवल एक धार्मिक परंपरा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह दिलों को जोड़ने वाला, रिश्तों को मजबूत करने वाला और इंसानियत की मिसाल पेश करने वाला त्योहार बन गया। शहर के दिलकुशा गार्डन स्थित दरगाह हजरत कासिम शहीद बाबा पर एक अनोखी परंपरा इस बार भी निभाई गई, 35 वर्षों से लगातार दो हिंदू बहनें अपने मुस्लिम भाई की कलाई पर राखी बांध रही हैं। यह रिश्ता न खून का है, न जाति या धर्म का, बल्कि प्रेम, विश्वास और भाईचारे का है।

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शुरुआत 1990 में हुई थी

दरगाह के सज्जादानशीन जुबेर अहमद याद करते हैं कि यह सिलसिला 1990 में शुरू हुआ था। उनके परिवार में कोई सगी बहन नहीं थी, लेकिन बहन के रूप में अनीता जायसवाल और विमला उनके जीवन में आईं। दोनों का बचपन से ही दरगाह पर आना-जाना था। जुबेर के पिता बेटियों को बेहद प्यार करते थे, और अनीता व विमला भी उन्हें ‘पापा’ कहकर पुकारती थीं। पहली बार जब रक्षाबंधन आया, तो अनीता और विमला ने जुबेर की कलाई पर राखी बांधने की इच्छा जताई। जुबेर के पिता ने खुशी-खुशी इसकी सहमति दी, और उसी दिन से यह रिश्ता जन्म ले लिया।

रिवाज और सम्मान के साथ राखी का त्योहार

हर साल की तरह इस बार भी रक्षाबंधन के दिन अनीता और विमला अपने ससुराल से बच्चों के साथ दरगाह पहुंचीं। उन्होंने पूरी श्रद्धा और रिवाज के साथ राखी की थाली सजाई। थाली में चावल, कुमकुम, दीपक और मिठाई रखी गई। जुबेर अहमद टोपी पहनकर ससम्मान बैठे। बहनों ने पहले उनके माथे पर तिलक लगाया, फिर कलाई पर राखी बांधी और मिठाई खिलाई। जुबेर ने भी उन्हें उपहार देकर अपनी खुशी व्यक्त की।

“यही असली भारत है”- जुबेर अहमद 

राखी बंधवाने के बाद जुबेर अहमद भावुक हो उठे। उन्होंने कहा, “यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि पिछले 35 साल से यह परंपरा निभ रही है। रक्षाबंधन भाई और बहन के लिए बहुत खास है, और इसे धर्म के चश्मे से नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आपसी विश्वास से देखा जाना चाहिए। यही असली भारत है, जहां दिलों में कोई भेद नहीं होता।”

रिश्ते की मजबूती समय के साथ बढ़ी

जुबेर बताते हैं कि जब यह परंपरा शुरू हुई थी, तब अनीता और विमला अविवाहित थीं। अब दोनों विवाहित हैं, उनके बच्चे हैं, लेकिन रक्षाबंधन के दिन वे सबसे पहले दरगाह आती हैं और फिर अपने सगे भाइयों को राखी बांधती हैं। यह रिश्ता समय के साथ और मजबूत हुआ है।

धर्म से ऊपर उठकर भाईचारा

इस अनोखे बंधन का संदेश साफ है, धर्म अलग हो सकते हैं, लेकिन दिल हमेशा एक हो सकते हैं। रक्षाबंधन का यह पर्व हिंदू-मुस्लिम एकता और सांस्कृतिक भाईचारे का प्रतीक है। अनीता कहती हैं,“हमारे लिए जुबेर सिर्फ भाई नहीं, परिवार का हिस्सा हैं। बचपन से ही पापा (जुबेर के पिता) हमें अपनी बेटियों की तरह मानते थे। आज भी हम उस स्नेह और अपनापन को महसूस करते हैं।” विमला भी कहती हैं,“राखी बांधना हमारे लिए केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि भाई की सलामती की दुआ है। चाहे हम कहीं भी हों, रक्षाबंधन पर दरगाह जरूर आते हैं।”

समाज के लिए सीख

यह अनोखी मिसाल आज के दौर में एक मजबूत संदेश देती है कि रिश्ते सिर्फ खून के नहीं, बल्कि दिल के भी होते हैं। अगर इंसानियत और आपसी विश्वास हो, तो कोई भी दीवार लंबे समय तक खड़ी नहीं रह सकती। लखनऊ की यह कहानी बताती है कि त्योहार केवल रस्में निभाने का नाम नहीं, बल्कि यह इंसान को इंसान से जोड़ने का माध्यम है। यह त्योहार सिखाता है कि हमारे रिश्ते धर्म, जाति, भाषा से ऊपर उठकर केवल प्रेम और विश्वास पर टिके होने चाहिए।

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