Anna Hazare Journey: भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के प्रतीक अन्ना हजारे एक बार फिर रालेगण सिद्धि में आमरण अनशन पर बैठने जा रहे हैं।
देशभर में भ्रष्टाचार विरोध की अलख जगाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने घोषणा की है कि वे 30 जनवरी 2026 से रालेगण सिद्धि में आमरण अनशन पर बैठेंगे। अन्ना का कहना है कि महाराष्ट्र में लोकायुक्त कानून तुरंत लागू किया जाए। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर चेतावनी भी दी है। अन्ना का साफ कहना है कि इस बार वे अपनी आखिरी सांस तक अनशन जारी रखेंगे।
अन्ना हजारे का सफर एक साधारण सैनिक से जन-जन के नेता बनने तक का रहा है। गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित अन्ना ने हमेशा सत्य, अहिंसा और अनशन को अपना हथियार बनाया। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका शांतिपूर्ण आंदोलन पूरे देश के लिए उदाहरण बन गया। उन्होंने कई बार उपवास कर सरकारों को अपनी मांगें मानने पर मजबूर किया। वे अपनी गांधी टोपी और खादी की सादगी भरी पहचान के लिए भी जाने जाते हैं।
15 जून 1937 को महाराष्ट्र के भिंगार गांव में जन्मे अन्ना का असली नाम किसन बाबूराव हजारे (Kisan Baburao Hazare) है। वे एक गरीब परिवार से आते हैं। पिता बाबूराव हजारे मजदूरी करते थे और मां लक्ष्मीबाई गृहिणी थीं। छह भाई-बहनों में अन्ना भी एक थे, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वे सिर्फ सातवीं कक्षा तक ही पढ़ पाए। गरीबी के चलते परिवार को मुंबई जाना पड़ा, जहां अन्ना ने एक फूल वाले की दुकान पर नौकरी की। यहां उन्हें सिर्फ 40 रुपये मासिक मजदूरी मिलती थी, जिससे किसी तरह घर का खर्च चलता था।
मुंबई में रहते हुए अन्ना गरीबों की सहायता करने वाले एक स्थानीय समूह से जुड़े और समाज सेवा की ओर प्रेरित हुए। 1962 में उन्होंने भारतीय सेना में भर्ती ली। भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार ने युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील की थी, जिसके बाद अन्ना मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर बने। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे पंजाब के खेमकरण सेक्टर में तैनात थे। 12 नवंबर 1965 को पाकिस्तान के हवाई हमले में उनके साथी सैनिक मारे गए, जबकि अन्ना चमत्कारिक रूप से बच गए। इस घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।
सेना से रिटायर होने के बाद अन्ना अहमदनगर जिले के रालेगण सिद्धि लौट आए। उस समय गांव सूखे, गरीबी, शराबखोरी और अपराध की चपेट में था। अन्ना ने गांव के लोगों के साथ मिलकर उसकी किस्मत बदलने का बीड़ा उठाया। जल संरक्षण और तालाब निर्माण के जरिए उन्होंने सिंचाई की समस्या दूर की। खेती सुधरी और फसल उत्पादन बढ़ा। पेड़ लगाकर गांव को हरियाली से भर दिया। सोलर ऊर्जा, गोबर गैस और सामुदायिक प्रयासों के कारण रालेगण सिद्धि आत्मनिर्भर गांव बन गया। आज यह देश के आदर्श गांवों में गिना जाता है।
अन्ना हजारे का जीवन त्याग, संघर्ष और समाजसेवा की मिसाल है। आज भी उनके आंदोलन लोगों में जागरूकता जगाते हैं। लोकायुक्त कानून के लिए उनका प्रस्तावित अनशन उनके लंबे संघर्ष की एक और कड़ी है, जिसमें वे व्यवस्था में पारदर्शिता और नैतिकता की मांग कर रहे हैं।