सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह मौलिक सुरक्षा का 'गंभीर उल्लंघन' है, जो स्तब्ध करने वाला है।
सुप्रीम कोर्ट ने 50 से ज्यादा बार विचाराधीन कैदी को कोर्ट में पेश न करने पर महाराष्ट्र जेल प्राधिकरण को कड़ी फटकार लगाई है। शीर्ष कोर्ट ने इसे ‘भयावह और चौंकाने वाली’ लापरवाही बताते हुए जांच के आदेश दिए है। साथ ही याचिकाकर्ता को जमानत दे दी, जो चार साल से अधिक समय जेल में है।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह (Justice Ahsanuddin Amanullah) और जस्टिस प्रशांत मिश्रा (Justice Prashant Kumar Mishra) की पीठ ने इसे मौलिक सुरक्षा का गंभीर उल्लंघन बताया। पीठ ने महाराष्ट्र राज्य के अधिकारियों के आचरण को स्तब्ध करने वाला बताया।
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "किसी आरोपी को अदालत में पेश करना न केवल त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच भी है ताकि कैदी के साथ कोई दुर्व्यवहार न हो और वह सीधे अदालत के संपर्क में आकर अधिकारियों के खिलाफ अपनी शिकायतें दर्ज करा सके।"
याचिकाकर्ता शशि जुरमानी (Shashi Jurmani) के खिलाफ 2021 में ठाणे जिले के विट्ठलवाड़ी पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 326, 353 और 333 सहित अन्य धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज थी। इस मामले में वह चार साल से अधिक समय से जेल में था।
याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ठाणे जिले की कल्याण कोर्ट में सुनवाई की 85 तारीखों में से 55 तारीखों पर आरोपी शशि जुरमानी को अदालत के समक्ष पेश ही नहीं किया गया।
याचिकाकर्ता शशि जुरमानी पर पुलिस कांस्टेबल सहित दो लोगों से मारपीट और उन्हें चाकू मारने का आरोप है। लेकिन कांस्टेबल ने अपने बयान में याचिकाकर्ता का नाम नहीं लिया। मामले के दूसरे पीड़ित (मृतक) ने भी अपने बयान में स्पष्ट कहा था कि याचिकाकर्ता और उमेश ने उस पर केवल लात-घूंसों से हमला किया था। इसके अलावा, मामले के सह-आरोपी उमेश को पहले ही जमानत मिल चुकी है। इन तथ्यों और आरोपी की चार साल से अधिक की हिरासत को देखते हुए, कोर्ट ने उसे जमानत दे दी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस घोर लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाते हुए महाराष्ट्र के जेल महानिदेशक (Director General of Prisons) या नामित जेल विभाग प्रमुख को व्यक्तिगत रूप से मामले की जांच करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने आदेश दिया है कि जिम्मेदारी तय की जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने डीजी जेल को चेतावनी दी कि यदि किसी अधिकारी को बचाने का प्रयास किया गया तो उन पर व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय की जाएगी। दो महीने के भीतर रिपोर्ट देने के साथ ही व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 3 फरवरी 2026 को होगी।