नागौर

 पांच महीने में नसबंदी के 26 ऑपरेशन फेल, मुआवजा बारह साल बाद भी महज तीस हजार

 करीब पांच महीने में नसबंदी के 26 ऑपरेशन फेल हो चुके हैं। यह वो संख्या है जो विभाग या सरकार तक पहुंची।

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Oct 07, 2024
तीस फीसदी से अधिक तो नहीं करती शिकायत व दावा

नागौर. करीब पांच महीने में नसबंदी के 26 ऑपरेशन फेल हो चुके हैं। यह वो संख्या है जो विभाग या सरकार तक पहुंची। वास्तविक संख्या इससे काफी अधिक है। दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में ऑपरेशन फेल होने पर सरकार से मिलने वाले मुआवजे के बारे में भी लोगों को जानकारी नहीं है। पिछले तीन साल का आकलन करें तो फेल ऑपरेशन की संख्या में इजाफा हुआ है।

सूत्रों के अनुसार वर्ष 2024-25 के एक अप्रेल से 31 अगस्त यानी करीब पांच महीने में नागौर जिले में नसबंदी के 3056 ऑपरेशन हुए इनमें करीब 26 फेल रहे, जबकि पिछले साल वर्ष 2025-24 में पांच हजार 798 ऑपरेशन में फेल केस की संख्या 29 रही। इससे जाहिर होता है कि औसतन इस बार बिगड़ने वाले ऑपरेशन अधिक हैं। इन दो साल में हम अकेले नागौर की बात कर रहे हैं। इससे पहले वर्ष 2022-23 (नागौर-डीडवाना) में करीब साढ़े ग्यारह हजार ऑपरेशन में सिर्फ 19 ही फेल पाए गए थे।

यह सरकार के पास पहुंचने वाले आंकड़े हैं । निजी अस्पतालों के ऐसे मामलों की ना तो ठीक ढंग से गणना हो पा रही है ना ही सरकारी स्तर पर इसके लिए कोई ठोस तरीका है। यह बात सही है कि नसबंदी से मिलने वाली सहायता के चलते ग्रामीण महिलाएं सरकारी अस्पताल ही चुनती हैं। जबकि शहरी महिलाएं निजी अस्पताल को तरजीह दे रही हैं। पिछले कुछ सालों में नसबंदी के मामले में खासा बदलाव तो नहीं हुआ पर पहले ही बहुत कम पुरुषों के मुकाबले अब महिलाओं की संख्या भी घट रही है।

मुआवजा तीस हजार पर इतने दुश्वार..

नसबंदी फेल होने पर पीडि़ता को अभी तीस हजार का मुआवजा मिल रहा है। करीब दस-बारह साल पहले यह राशि करीब 25 हजार थी। नसबंदी का केस फेल होने पर कमेटी मुआवजा तय करती है। इस कमेटी में स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, एनेस्थेटिक, सर्जन होता है। ये आने वाली शिकायतों की मेडिकल स्टडी करते हैं। कई केसों में नसबंदी के दौरान सर्जन अपने कमेंट में दोबारा गर्भ ठहरने की आशंका जता देते हैं। ऐसे केसों में मुआवजा रिफ्यूज हो जाता है। शेष केस जयपुर रैफर कर दिए जाते हैं। इसके लिए पीडि़ता को तीन महीने में शिकायत करनी होती है। नसबंदी के बाद गर्भ ठहरने की जानकारी तीन महीने के भीतर एएनएम-पीएचसी फिर ब्लॉक को देनी होती है। सोनोग्राफी के साथ फिर यह मामला मुख्यालय तक पहुंचता है। अधिकांश मामलों में तो गर्भपात हो ही नहीं पाता।

तीस फीसदी से अधिक तो नहीं करतीं दावा...

चिकित्सक खुद मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में महिलाएं नसबंदी केस फेल होने पर सामने नहीं आतीं। ना मुआवजे का दावा करती हैं ना ही शर्म के मारे कोई शिकायत करती हैं। एक अनुमान के मुताबिक केस फेल होने पर भी तीस फीसदी से अधिक महिलाएं इसके लिए कोई दावा नहीं करतीं। इसका एक कारण यह भी है कि अधिकांश सरकारी झंझट में पडऩा नहीं चाहतीं।

घट रही है नसबंदी...

सूत्र बताते हैं कि पिछले पांच साल में नसबंदी में भी कमी आई है। जिले की बात करें तो पुरुष की नसबंदी जिलेभर में डेढ़-दो दर्जन होती है। महिलाओं की संख्या में भी कमी आई है। नागौर-डीडवाना जिले में जहां सालाना इनकी संख्या दस से बारह हजार थी वो अब घटकर आठ-नौ हजार रह गई। गर्भनिरोधक साधन के साथ बढ़ती शिक्षा और जागरूकता के चलते महिलाएं भी इससे बचने लगी हैं।

इनका कहना..

इतने केस तो दरअसल फेल होते ही हैं, यह औसत पूरे वर्ल्ड में ही है। फेल केस में पीडि़ता दावा करती है तो कमेटी जल्द से जल्द मुआवजा दिलाती है। अभी मुआवजे का कोई केस पेंडिंग नहीं है।

-डॉ शीशराम चौधरी, एसीएमएचओ नागौर

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महिलाओं में शिक्षा के साथ जागरूकता बढ़ी है, ऐसे में नसबंदी को अब प्राथमिकता देना कम कर दिया है। संतान नहीं चाहने, उनके बीच गैप रखने के लिए इतने साधन हैं, इसके चलते भी इसमें कमी आई है।

-डॉ दीपिका व्यास, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, नागौर।

Published on:
07 Oct 2024 08:53 pm
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