
अश्वगंधा। फाइल फोटो पत्रिका
Rajasthan Farmers : नागौर जिले में अब परंपरागत फसलों के साथ किसान औषधीय खेती की ओर तेजी से रूख कर रहे हैं। चौसला क्षेत्र में अश्वगंधा खेती की शुरुआत की है। किसान सजन मीणा ने इस बार 7 बीघा में अश्वगंधा की फसल उगाई है। बता दें कि अश्वगंधा के फल-जड़ें कई आयुर्वेदिक औषधियों में काम में ली जाती हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार अश्वगंधा नकदी फसल है। औषधीय पौधा होने से अच्छे दाम मिलते हैं।
किसान ने बताया कि ट्रेक्टर से गहरी जुताई के बाद खाद डाल कर खेत को तैयार किया। बीजोपचार कर बुवाई भुरकाव विधि से की। एक हेक्टेयर में अश्वगंधा के 7 से 8 किलो बीज काम में लिए है। बुवाई के तुरंत बाद पहला पानी दिया। दूसरा पानी 5-7 दिन में दे देना चाहिए। इसकी फसल में पहला खरपतवार प्रबंधन फसल की 20-22 दिन की अवस्था में और दूसरा 35-40 दिन की अवस्था में करना चाहिए।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इसकी खेती सूखे और अर्ध-शुष्क इलाकों में होती है। हल्की दोमट और रेतीली मिट्टी जिसमें पानी का जमाव न हो, इसके लिए उपयुक्त है। यह फसल 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगाई जा सकती है। अश्वगंधा की खेती खारे पानी में भी की जा सकती है।
जैविक खाद और वर्मी-कंपोस्ट का उपयोग फसल की गुणवत्ता को बढ़ाता है। सूखे पक्के और लाल-नारंगी फल फसल के पकने का संकेत देते हैं। अश्वगंधा की फसल बुवाई के 150-180 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जड़ें प्राप्त करने के लिए पूरे पौधे को उखाड़ लें।
किसान सजन ने बताया मुझे अश्वगंधा की खेती करने की प्रेरणा राजस्थान पत्रिका के एग्रोटेक पेज से मिली। एग्रोटेक में प्रकाशित कृषि सुझावों के अनुसार औषधीय खेती करने का मन बनाया। पहली बार परंपरागत फसलों के साथ 7 बीघा में अश्वगंधा की खेती की है। उम्मीद है, अच्छी उपज होगी।
अच्छी उपज लेने के लिए प्रति एकड़ 8 से 10 ट्रॉली गोबर खाद काम में लें। बुवाई के लगभग 40 दिन बाद जब फसल कमजोर दिखे, तब 10 किलो यूरिया प्रति एकड़ के हिसाब से सिंचाई के साथ दें। अश्वगंधा फसल में वैसे कीट और रोग प्रकोप कम होता है, लेकिन पत्ती धब्बा रोग हो तो डाइथेन एम-45 का छिड़काव 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल के रूप में करें। जड़ सड़न के लिए बाविस्टिन का 3 ग्राम प्रति लीटर घोल करके छिड़काव करें।
अश्वगंधा बलवर्धक, स्मरणशक्तिवर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी, स्फूर्तिदायक माना गया है। इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। यह शरीर की धातुओं को पुष्ट करता है।
जगदीश कुमावत, आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी, चौसला
अश्वगंधा की खेती कम पानी वाले क्षेत्रों व खारे पानी में आसानी से हो सकती है। यह कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल है। इस फसल के लिए क्षेत्र की मिट्टी उपयुक्त है।
भंवरलाल शर्मा, से.नि. सहायक निदेशक, कृषि विस्तार, कुचामन सिटी
Updated on:
18 Dec 2025 01:45 pm
Published on:
18 Dec 2025 01:44 pm
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