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राजस्थान में ‘आक’ का पौधा बनेगा कमाई का नया जरिया, ग्रामीणों के लिए खुलेंगे रोजगार के द्वार

मारवाड़ में उगने वाला आक का पौधा अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था और टिकाऊ फैशन का नया आधार बन रहा है। निट्रा और रूमा देवी फाउंडेशन ने आक के रेशे से जैकेट, दस्ताने और टेंट जैसे उत्पादों के लिए एमओयू किया।

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Aak plant

आक का पौधा (फोटो- पत्रिका)

बाड़मेर: मारवाड़ में प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला आक का पौधा अब केवल रेगिस्तान की वनस्पति नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और टिकाऊ फैशन उद्योग के लिए नए अवसरों का आधार बन रहा है। वस्त्र मंत्रालय के उत्तर भारत वस्त्र अनुसंधान संस्थान (निट्रा) ने आक के रेशे से बनाए जा रहे सर्दियों के कपड़े, दस्ताने, जुराब और बर्फीले क्षेत्रों के लिए टेंट जैसी नवीन उत्पाद शृंखला को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदारी की है।

गाजियाबाद स्थित निट्रा केंद्र में संस्थान के महानिदेशक डॉ. एमएस परमार और रूमा देवी फाउंडेशन की निदेशक, अंतरराष्ट्रीय फैशन डिजाइनर डॉ. रूमा देवी ने इसे लेकर एमओयू पर हस्ताक्षर किए। कार्यक्रम में निट्रा की टीम से डॉ. प्रीति, फाउंडेशन की ओर से विक्रम सिंह, प्रवक्ता हर्षिता सिंह उपस्थित रहे। यह पहल केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह के नवंबर 2025 में निट्रा में आक की फसल के निरीक्षण के बाद तेजी से आगे बढ़ी।

आक के पौधे की क्षमता, शोध का नया अध्याय

एमओयू का मुख्य उद्देश्य आक-पाडिया से उच्च गुणवत्ता वाला रेशा तैयार करना, आक की खेती पर अनुसंधान बढ़ाना, तकनीकी विकास को गति देना, आक आधारित उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाना है। आक का रेशा ऊन से अधिक गर्म और रेशमी मुलायम होता है। इसके तने, फल और बीज से भी उपयोगी सामग्री तैयार की जाती है।

बीज का तेल कॉस्मेटिक उत्पादों में उपयोग होता है। यह पौधा कम पानी में भी फलता-फूलता है। प्रति एकड़ 200-300 किलो तक उत्पादन देता है। निट्रा की प्रयोगशालाओं में आक रेशे की मजबूती, गुणवत्ता, वस्त्र निर्माण की तकनीक पर विस्तृत शोध जारी है। वर्तमान में रेशे की मांग इसकी आपूर्ति से कहीं अधिक है। जो किसानों और ग्रामीण महिलाओं के लिए बड़े आर्थिक अवसर खोलता है।

रूमा देवी फाउंडेशन ने दिया ग्रामीणों को रोजगार

वस्त्र मंत्री की पहल पर बीते गर्मियों में रूमा देवी फाउंडेशन ने बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर और नागौर जिले के ग्रामीण इलाकों से 2000 किलो आक पाडिया एकत्रित कराया। इससे गांवों में बिना किसी लागत के खेतों में स्वतः उगने वाले आक से ग्रामीणों को घर बैठे रोजगार मिलने लगा है। प्रारंभिक सफलता के बाद अब जागरूकता, प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे। होली के आसपास आक का रेशा पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है।

विशेष उत्पाद, अंतरराष्ट्रीय पहचान

आक से जैकेट, दस्ताने, कंबल और कपड़ों समेत दर्जनों उत्पाद तैयार हो रहे हैं। जिन्हें अब वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई जाएगी। यह पहल वोकल फॉर लोकल और पर्यावरण अनुकूल, क्रूरता-मुक्त फैशन को बढ़ावा देगी। यह एमओयू ग्रामीण भारत के आर्थिक विकास की दिशा में बड़ा कदम होगा।
-डॉ. रूमा देवी निदेशक, रूमा देवी फाउंडेशन


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