सरकारी स्कूलों में आठवीं के बाद कम हो रही विद्यार्थियों की संख्या, स्कूली शिक्षा के साथ बच्चों को नीट व जेईई की कोचिंग करवाने के लिए भेज रहे कोटा-सीकर, कई स्कूलों में 10वीं के बाद 11वीं व 12वीं में आधे भी नहीं रहते बच्चे, बच्चों पर बढ़ रहा पढ़ाई का दबाव, डिप्रेशन में जाकर आत्महत्या करने की भी बड़ी वजह
नागौर. प्रदेश के सरकारी स्कूलों में आठवीं के बाद विद्यार्थियों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। यूं तो इसकी कई वजह है, लेकिन पिछले कुछ सालों में इसकी बड़ी वजह बच्चों का कोचिंग संस्थानों की ओर से जाना है। जिले सहित प्रदेश के कई स्कूल ऐसे हैं, जहां जो दसवीं के बाद 11वीं व 12वीं में बच्चों की संख्या दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर रहा है। प्रदेश में संचालित 134 स्वामी विवेकानन्द मॉडल स्कूल एवं 3737 महात्मा गांधी राजकीय विद्यालयों में भी बच्चों की संख्या कम हो रही है, जबकि ये विद्यालय सरकार ने अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई कराने के लिए खोले थे। नागौर जिला मुख्यालय पर संचालित एकमात्र केन्द्रीय विद्यालय में भी 10वीं तक प्रवेश लेने वाले बच्चों की कतार रहती है, लेकिन 11वीं में अच्छा परिणाम होने के बावजूद टीसी कटवा रहे हैं। वजह एक ही है कि बच्चे को कोटा व सीकर जैसे शहरों में नीट व जेईई की तैयारी के लिए भेज रहे हैं।
फेक्ट फाइल
प्रदेश में स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल - 134
कुल विद्यार्थियों की संख्या - 64,464
आठवीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 9027
नवीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 8546
दसवीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 6661
11वीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 3649
12वीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 3011
महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय (अंग्रेजी माध्यम) - 3737
कुल विद्यार्थियों की संख्या - 6,76,466
आठवीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 60,441
नवीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 56,056
दसवीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 42,288
11वीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 38,018
12वीं कक्षा में कुल विद्यार्थी - 35,788
मॉडल स्कूलों में एक तिहाई कम हो गए
प्रदेश के 134 मॉडल स्कूलों में इस वर्ष फरवरी माह में कुल बच्चों की संख्या 64,464 थी। 8वीं कक्षा में जहां विद्यार्थियों में संख्या 9027 थी, वहां 12वीं में मात्र 3011 रही। इसी प्रकार प्रदेश के 3737 महात्मा गांधी राजकीय विद्यालयों (अंग्रेजी माध्यम) में कुल 6,76,466 विद्यार्थी थे। कक्षा 8वीं में 60,441 विद्यार्थी थे, जबकि 12वीं में 35,788 ही थे।
एक्सपर्ट व्यू:
बच्चों पर गलत असर
हां, यह सही है कि आठवीं और दसवीं के बाद स्कूलों में नामांकन काफी गिर रहा है। आजकल अभिभावकों में एक ट्रेंड सा हो गया है कि वे प्री-फाउंडेशन के नाम से बच्चों को नीट व जेईई की कोचिंग करवाते हैं। इसके कारण केवल सरकारी ही नहीं, बल्कि निजी विद्यालयों में भी, खासकर विज्ञान संकाय में 11वीं व 12वीं में बच्चों की संख्या आधी हो रही है। इसका बच्चों पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है, 9वीं में बच्चे का मानसिक विकास इतना नहीं हो पाता है, जितना बोझ उस पर डाला जाता है। बच्चे के रुचि, बच्चे की क्षमता व उसकी परिस्थिति के बारे में कोई नहीं सोचता। बच्चों को जबरदस्ती उस तरफ धकेल रहे हैं, जहां बच्चा भले ही जाना नहीं चाहे। इसके कारण बच्चों का मानसिक विकास रुकता है और सुसाइड की घटनाएं भी बढ़ी है। मनो चिकित्सकों ने भी यह माना है।
- राधेश्याम गोदारा, एसीबीईओ, नागौर
स्टाफ की कमी भी बड़ा कारण
सरकार ने भले ही मॉडल स्कूल और महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलें खोल दी, लेकिन उनमें विषय विशेषज्ञ शिक्षकों के पद लम्बे समय से रिक्त हैं। जो शिक्षक लगे हुए हैं, उन्हें भी दूसरे कार्यों में लगा रखा है, जिसके कारण वे शैक्षणिक कार्य पर कम ध्यान दे पाते हैं, इसके कारण बच्चे दूसरी जगह शिफ्ट हो रहे हैं। इसके साथ अभिभावकों की ओर से बच्चों को बिना रुचि व बिना योग्यता के नीट व जेईई की ओर धकेला जा रहा है, जिसके गलत परिणाम सामने आ रहे हैं।
- डॉ. शंकरलाल जाखड़, सेवानिवृत्त प्राचार्य, मिर्धा कॉलेज, नागौर