डेढ़ साल में 4166 पोक्सो प्रकरण दर्ज, सिर्फ 2880 मामलों में ही हुई चालान पेशी, समय पर चालान पेश नहीं करने वाले जांच अधिकारियों पर नहीं होती कार्रवाई
नागौर. राज्य में नाबालिग बच्चियों के साथ यौन हिंसा और पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज प्रकरणों में जांच अधिकारियों की लापरवाही न्याय की राह में बड़ी बाधा बन रही है। सरकारी नियमों में स्पष्ट प्रावधान होने के बावजूद समय पर चालान प्रस्तुत नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है।
चौंकाने वाले आंकड़े बताते हैं कि पिछले डेढ़ साल में (एक जनवरी 2024 से 31 जुलाई 2025 तक) राजस्थान में पोक्सो एक्ट और नाबालिगों के साथ यौन अपराध के 4166 प्रकरण दर्ज हुए, लेकिन इनमें से सिर्फ 2880 मामलों में ही जांच अधिकारी चालान पेश कर पाए। यानी करीब 1300 से अधिक प्रकरण अब भी न्याय प्रक्रिया की प्रारंभिक सीढ़ी पर अटके हैं। सरकार की ओर से विधानसभा में एक सवाल के जवाब में पेश की गई जानकारी के अनुसार 374 प्रकरणों में अनुसंधान लम्बित है और 912 प्रकरणों में एफआर दी गई है। सरकार ने यह भी माना है कि नाबालिग बच्चियों के साथ होने वाली यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि 2025 में अप्रत्याशित है, क्योंकि पिछले पांच साल में जहां 2 हजार के आसपास मामले दर्ज हो रहे हैं, वहां इस साल जुलाई (सात महीने में) तक ही 1965 मामले दर्ज हो चुके हैं। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे साल में ऐसे मामलों की संख्या 3 हजार पार हो जाएगी।
फैक्ट फाइल
नाबालिग बच्चियों के साथ होने वाली यौन हिंसा के आंकड़े
वर्ष - कुल प्रकरण - वृद्धि
2020 - 1573 - -
2021 - 1866 - 18.6 प्रतिशत
2022 - 2037 - 9.16 प्रतिशत
2023 - 2110 - 3.58 प्रतिशत
2024 - 2181 - 3.36 प्रतिशत
ढिलाई से बिगड़ता है केस, कमजोर पड़ती है गवाही
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि देरी से न सिर्फ जांच प्रक्रिया कमजोर होती है, बल्कि अदालत में गवाहों के बयान और साक्ष्य भी प्रभावित हो जाते हैं। कई बार तो लंबी अवधि के कारण पीडि़ता और उसका परिवार न्याय की उम्मीद ही छोड़ देते हैं। इससे समाज में भी गलत संदेश जाता है कि अपराध करने वालों को सजा मिलने में वर्षों लग जाते हैं।
कार्रवाई का प्रावधान, पर जिम्मेदार सुरक्षित
नियमों के अनुसार यदि जांच अधिकारी निर्धारित समय में चालान पेश नहीं करता है तो उसके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन पुलिस विभाग में इस नियम की पालना शायद ही कहीं होती है। नतीजा यह कि जांच में लापरवाही बरतने वाले अफसर बिना किसी उत्तरदायित्व के बच निकलते हैं।
पुलिस की लापरवाही से प्रभावित हो रहा न्याय तंत्र
राज्यभर में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां पुलिस की लापरवाही के कारण पीडि़ता को समय पर न्याय नहीं मिल पाया। जांच रिपोर्ट में देरी से अदालत में सुनवाई टलती रहती है और आरोपी लंबे समय तक जेल से बाहर रहते हैं। कई बार तो पीडि़ता और गवाहों पर दबाव बनाकर समझौते के प्रयास भी किए जाते हैं।
कठोर मॉनिटरिंग की जरूरत
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं और महिला सुरक्षा संगठनों का कहना है कि पोक्सो जैसे संवेदनशील मामलों में देरी अस्वीकार्य है। सरकार को चाहिए कि प्रत्येक जिले में लंबित पोक्सो प्रकरणों की मॉनिटरिंग के लिए विशेष समिति गठित की जाए, जो यह सुनिश्चित करे कि कोई भी चालान समय सीमा से आगे न खिंचे।राज्य स्तर पर यह भी मांग उठ रही है कि ऐसे मामलों में जांच अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो और लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। क्योंकि जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक न्याय में देरी और पीडि़ताओं की पीड़ा दोनों जारी रहेंगी।
पत्रिका व्यू
प्रदेश में अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है। अपराधियों को जब तक सजा नहीं मिलेगी, तब तक वे ऐसा करते रहेंगे। पुलिस की लापरवाही कहीं न कहीं उन्हें बचा रही है, ऐसे में अपराध और फल-फूल रहा है। प्रदेश में बढ़ते अपराध के कारण राज्य सरकार परेशान है। तब भी प्रदेश की पुलिस समय पर चालान पेश नहीं कर पाती। इस रवैये को सुधारना होगा। डीजीपी को ऐसे मामलों में गंभीरता से विचार कर एक्शन लेना होगा।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
समय पर चालान पेश नहीं करने का फायदा आरोपी को मिल जाता है। वहीं पीडि़ता को न्याय नहीं मिल पाता है। पोक्सो के प्रकरणों में पुलिस को यथाशीघ्र चालान पेश करने चाहिए, ताकि आरोपियों को सजा मिल सके।
- गोविन्द कड़वा, एडवोकेट, नागौर