Rajasthan News: प्रदेश में बेटियां खेलने-कूदने की उम्र में घर, वर्कप्लेस, सड़क और स्कूल तक में में वे यौन हिंसा का शिकार हो रहीं हैं। गत साढ़े तीन साल में यौन हिंसा व पोक्सो एक्ट के तहत प्रदेश में 14 हजार 731 मामले दर्ज हुए हैं।
Rajasthan News: बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले प्रदेश में बेटियां अपनों के बीच ही महफूज नहीं हैं। खेलने-कूदने की उम्र में घर, वर्कप्लेस, सड़क और स्कूल तक में में वे यौन हिंसा का शिकार हो रहीं हैं। गत साढ़े तीन साल में यौन हिंसा व पोक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत प्रदेश में 14 हजार 731 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें से अधिकतर मामलों में मासूम अपनों से ही यौन हिंसा का शिकार हुई हैं।
वहीं, जांच में देरी से पुलिस पर भी सवालिया निशान लगा रही है। इनमें से एक हजार से ज्यादा मामले पुलिस की फाइलों में पेंडिंग हैं। पुलिस का मानना है कि बालिकाओं से यौन हिंसा के मामलों में 60 फीसदी जानकार व रिश्तेदार होते हैं। नागौर के एक गांव के एक सरकारी शिक्षक के खिलाफ नाबालिग से यौन हिंसा का मामला दर्ज हुआ तो एक चाचा ने नाबालिग के साथ कुछ समय पहले आत्महत्या तक कर ली। वो बताते हैं कि बालिका आसानी से अपने और जानकारों की शिकार हो जाती हैं। कई बार लालच अथवा डर से उनका शोषण होता है। ऐसे मामलों में आरोपी को पकड़ने में पुलिस को ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ती।
नाबालिग से यौन हिंसा के मामले में राजधानी जयपुर में भी स्थिति चिंताजनक है। जयपुर में यह संख्या ढाई हजार से ज्यादा है। अन्य जिलों में मामलों में लगातार बढ़ोतरी हुई है।
नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में करीब सात साल में 841 मामले पोक्सो के दर्ज हुए हैं। इनमें पचास फीसदी से अधिक तो समझौते की भेंट चढ़ चुके हैं। खास बात यह है कि इनमें अधिकांश के राजीनामे भी आठ-दस महीने में हो गए। हालांकि मुआवजा पाने और रंजिश में दुश्मन को फंसाने के लिए भी कई मामले दर्ज करवाए गए हैं।
नागौर के एएसपी (महिला अपराध अनुसंधान सेल) नेमीचंद खारिया ने बताया कि, "पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज होते ही पुलिस तीव्र गति से अनुसंधान करती है। जुर्म प्रमाणित होने पर पुलिस का प्रयास रहता है कि आरोपी को जल्द से जल्द अदालत सजा दे। पोक्सो मामलों में पुलिस बिल्कुल भी कोताही नहीं बरतती।"
वहीं, नागौर के अधिवक्ता महावीर विश्नोई ने जानकारी दी है कि, "पोक्सो एक्ट आने से जागरूकता बढ़ी है। त्वरित न्याय मिलने से अब मामला दर्ज कराने में कोई नहीं हिचकता। स्कूलों में गुड टच-बैड टच के जरिए भी बालिकाओं को जागरूक किया जा रहा है। दु:ख की बात यह है कि ऐसा कृत्य करने वालों में बालिका के जानकार ही अधिक होते हैं।