Patrika Raksha Kavach Abhiyan: राजस्थान में पुलिस भ्रूण हत्या के मामले दर्ज तो करती है, लेकिन प्रकरण की जांच करने की बजाए एफआर लगा देती है। पुलिस की ओर से भ्रूण हत्या करने वालों के बारे में जांच-पड़ताल नहीं करने के कारण ही लोगों में डर खत्म हो रहा है।
श्यामलाल चौधरी
नागौर। राजस्थान में पुलिस भ्रूण हत्या के मामले दर्ज तो करती है, लेकिन प्रकरण की जांच करने की बजाए एफआर लगा देती है। वर्ष 2019 से 2023 तक प्रदेश भर में भ्रूण हत्या के कुल 449 मामले दर्ज किए गए। इनमें से मात्र 21 प्रकरणों (4.67 प्रतिशत) में चालान पेश किया गया, जबकि शेष दो मामलों को छोड़कर सभी प्रकरणों में पुलिस ने एफआर लगाकर बंद कर दिए। पुलिस की ओर से भ्रूण हत्या करने वालों के बारे में जांच-पड़ताल नहीं करने के कारण ही लोगों में डर खत्म हो रहा है।
प्रदेश में आए दिन भ्रूण हत्या की घटनाएं सामने आती रहती हैैं। इसमें भी कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं ज्यादा होती हैं। आज भी लोग मां के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का गंभीर अपराध करते हैं। अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए भी लोग भ्रूण हत्या करते हैं। बालिका की जगह बालक शिशु की प्राथमिकता भी बड़ा कारण है।
वर्ष 2019 से 2023 तक पांच साल में लगभग सभी जिलों में भ्रूण हत्या के 449 मामले दर्ज किए गए। ज्यादातर मामलों में पुलिस ने एफआर लगाकर फाइल बंद कर दी। भ्रूण हत्या के मामलों में चालान करने में सबसे आगे झालावाड़ जिले की पुलिस रही है।
झालावाड़ जिले में पांच साल में कुल छह मामले दर्ज हुए और सभी में चालानपेश किया गया। हालांकि आरोपियों की पहचान नहीं हो पाई। इसके अलावा पुष्कर में एक, नागौर में एक, शाहपुरा में दो, जयपुर में दो, बीकानेर में तीन, हनुमानगढ़ में एक, करौली में एक, पाली में एक, बूंदी में दो व सलूम्बर में एक मामले में चालान पेश किया गया।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि जब जन्म देने वालों को ही बच्चा नहीं चाहिए तो पुलिस क्यों सिर दर्द मोल ले। दूसरी बड़ी वजह यह भी है कि ऐसे मामलों में कोई भी पैरवी नहीं करता, इसलिए पुलिस जब एफआर लगाती है तो कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई जाती है।
भ्रूण हत्या का अपराध गंभीर है। इससे समाज में महिलाओं की संख्या घट रही है। ऐसे अपराध सामान्य तौर पर अस्पताल या क्लीनिक संचालकों की मिलीभगत से होते हैं। भ्रूण हत्या के मामलों में ज्यादातर एफआइआर सरकार की ओर से दर्ज करवाई जाती है, इसलिए जब पुलिस न्यायालय में एफआर पेश करती है तो सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर लोक अभियोजक को आपत्ति जतानी चाहिए, ताकि पुलिस पर सही जांच करने का दबाव बने, लेकिन ऐसा होता नहीं।
-के. राम बागडिया, सेवानिवृत्त डीजीपी
ऐसे मामलों में गहन अनुसंधान की जरूरत रहती है। यदि ढंग से जांच हो और डीएनए जांच से आरोपियों का पता लगाया जाए तो प्रभावी कार्रवाई हो सकती है, लेकिन पुलिस ऐसे में मामलों गंभीरता नहीं दिखाती।
-सवाईसिंह चौधरी, सेवानिवृत्त डीआईजी
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