भारत और विदेशों में काम करने वाले ओडिशा के मजदूरों की मृत्यु दर में लगातार इजाफा हो रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता मजदूरों की मौत के पीछे बढ़ते कर्ज, कम मजदूरी और सीमित स्थानीय रोजगार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
518 Migrant Workers Death : राज्य विधानसभा में सोमवार को सूचित किया गया कि पिछले पांच वर्षों में ओडिशा के कम से कम 518 प्रवासी श्रमिकों की राज्य और देश से बाहर काम करते समय मृत्यु हो गई है।
श्रम एवं कर्मचारी राज्य बीमा मंत्री गणेश राम सिंहखुंटिया ने शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन ये आँकड़े साझा किए। कुल मौतों में से 239 मौतें अकेले पिछले दो वर्षों में हुई हैं।
सिंहखुंटिया के अनुसार, सबसे अधिक 60 मौतें कालाहांडी जिले में हुईं, इसके बाद गंजम में 56, बलांगीर में 38, नवरंगपुर में 35, कंधमाल में 34 और रायगढ़ा में 34 मौतें हुईं।
मंत्री ने कहा, "518 मृतक श्रमिकों में से राज्य सरकार 395 शवों को वापस लाकर उनके परिवारों को सौंप चुकी है।"
ओडिशा से बड़ी संख्या में गरीब कामगार आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में पलायन करते हैं। इन राज्यों में ओडिशा के प्रवासी मजदूर ईंट भट्टों, कपड़ा इकाइयों और निर्माण स्थलों पर काम करते हैं। गंजम के लोग अक्सर कपड़ा उद्योग के काम के लिए सूरत जाते हैं, जबकि केंद्रपाड़ा और जगतसिंहपुर के लोग भारत में कहीं और प्लंबिंग का काम करते हैं।
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 40,088 मज़दूर दूसरे राज्यों में चले गए हैं, और सरकार ने 626 मज़दूर ठेकेदारों को लाइसेंस जारी किए हैं। बलांगीर ज़िले में प्रवासी मज़दूरों की संख्या सबसे ज़्यादा है, उसके बाद पश्चिमी ओडिशा का नुआपाड़ा है।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीआईटीयू) के राज्य अध्यक्ष जनार्दन पति ने द टेलीग्राफ से बताया कि बार-बार वादे करने के बावजूद ओडिशा में प्रवासी श्रमिकों के लिए कोई राहत नहीं है।”
उन्होंने कहा, “बेहतर वेतन और रोजगार की तलाश में हर साल हजारों मजदूर अपना घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं। सरकार का दावा है कि 16 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जा रहा है और नई परियोजनाएं शुरू हो रही हैं, फिर भी लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। कई बार तो पूरा परिवार ही पलायन कर जाता है। खबरों के मुताबिक 500 से अधिक मजदूरों की कार्यस्थल पर मौत हो चुकी है। हालांकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है क्योंकि कई मौतें दर्ज नहीं की जाती हैं।”
ओडिशा के सामाजिकर्ताओं का कहना है कि पलायन कर्ज़ और संकट का नतीजा है। एक के बाद एक सरकारों ने इस समस्या से निपटने के बड़े-बड़े दावे किए हैं, लेकिन मज़दूरों के बढ़ते प्रवास से पता चलता है कि ये दावे खोखले हैं। ये मज़दूर अपनी मर्ज़ी से नहीं, बल्कि हताशा में घर छोड़ते हैं।"