आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा (Raghav Chadha) ने राज्यसभा के शीतकालीन सत्र में कहा, गिग वर्कर' को मैं भारतीय अर्थव्यवस्था का अदृश्य पहिया कहता हूं।
Raghav Chadha inWinter Sesseion: आप सांसद राघव चड्ढा (AAP MP Raghav Chadha) ने शुक्रवार को राज्यसभा में बोलते हुए क्विक-कॉमर्स और ऐसे ही अन्य ऐप-आधारित डिलीवरी और सेवा व्यवसायों पर नियमन की मांग की। उन्होंने अपने संबोधन में गिग वर्कर्स के लाभ गिनाए। सांसद ने कहा कि गिग वर्कर्स की ज़िंदगी दिहाड़ी मज़दूरों और फ़ैक्टरी मज़दूरों से भी बदतर है।
उन्होंने राज्यसभा में कहा, "हर दिन, हम अपने मोबाइल फोन ऐप पर एक बटन दबाते हैं और एक सूचना आती है- 'आपका ऑर्डर रास्ते में है'… लेकिन इस सूचना के पीछे, अक्सर एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे हम पहचानते नहीं हैं।" उन्होंने उदाहरण के तौर पर "ज़ोमैटो और स्विगी के डिलीवरी बॉय, ओला और उबर के ड्राइवर, ब्लिंकिट और ज़ेप्टो के राइडर और अर्बन कंपनी के प्लंबर और ब्यूटीशियन जैसे अन्य लोगों" का ज़िक्र किया।
राघव चड्ढा ने शीतकालीन सत्र में कहा, "इसी मूक कार्यबल के कंधों पर खड़े होकर, इन सभी बड़े ई-कॉमर्स और इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स और कंपनियों ने आज अरबों डॉलर हासिल किए। वे यूनिकॉर्न बन गए हैं, लेकिन इन गिग वर्कर्स की हालत आज भी एक दिहाड़ी मजदूर से भी बदतर है।"
उन्होंने विशेष रूप से "गति के ज़ुल्म (अत्याचार)" की ओर इशारा किया। भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति सी.पी. राधाकृष्णन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "आजकल 10 मिनट में काम पूरा करने का एक खतरनाक चलन चल रहा है।"
उन्होंने बताया, "डिलीवरी के समय के दबाव में, लाल बत्ती पर खड़ा डिलीवरी बॉय यही सोचता रहता है कि अगर वह देर से पहुंचा, तो उसकी रेटिंग गिर जाएगी। उसका इंसेंटिव कट जाएगा। ऐप उसे लॉग आउट कर देगा या उसकी आईडी ब्लॉक कर दी जाएगी। इसीलिए 10 मिनट की डिलीवरी के लिए वह तेज़ रफ़्तार से गाड़ी चलाता है, लाल बत्ती पार करता है और अपनी जान जोखिम में डालता है।"
उन्होंने आगे कहा, "डिलीवरी का दूसरा दर्द है ग्राहक का गुस्सा… जैसे ही कोई ऑर्डर 5 से 7 मिनट लेट होता है, तो देखा जाता है कि ग्राहक पहले तो उन्हें फोन करके डांटता है और फिर, जब ऑर्डर डिलीवरी के लिए आता है तो उन्हें धमकाते हैं। यह कहते हैं, "मैं तुम्हारे खिलाफ शिकायत दर्ज करा दूंगा। और उसके बाद, एक स्टार रेटिंग देकर, वे उसके पूरे महीने की परफॉर्मेंस और बजट ख़राब कर देते हैं।"
उन्होंने कहा, "उनकी स्थिति किसी कारखाने में काम करने वाले कर्मचारी से भी बदतर है। क्योंकि उन्हें न तो स्थायी रोज़गार मिलता है, न ही मानवीय कामकाजी परिस्थितियां, और न ही स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा।"
चड्ढा ने अंत में कहा, "मैं कहना चाहता हूं कि ये लोग रोबोट नहीं हैं। ये भी किसी के पिता, पति, भाई और बेटे हैं। सदन को इनके बारे में सोचना चाहिए और 10 मिनट की डिलीवरी का यह ज़ुल्म खत्म होना चाहिए।"