Bihar Cabinet Expansion: 2025 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल विस्तार को राजनीतिक रूप से अहम माना जा रहा है।
Bihar Politics: बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा जोरों पर है, और यह संभावना है कि यह विस्तार बजट सत्र से पहले, यानी 28 फरवरी 2025 से पहले हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हाल ही में भागलपुर में हुई मुलाकात ने इन अटकलों को और हवा दी है। 2025 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए इस विस्तार को राजनीतिक रूप से अहम माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, इसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को चार और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को दो मंत्री पद मिल सकते हैं।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने बुधवार को घोषणा की कि वह नीतीश कुमार सरकार में राजस्व मंत्री के पद से इस्तीफा देंगे। उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, "मैं राजस्व मंत्री के पद से इस्तीफा देने जा रहा हूं। 'एक व्यक्ति, एक पद' पार्टी का सिद्धांत है। मैं आभारी हूं कि केंद्रीय नेतृत्व ने मुझे पार्टी की राज्य इकाई की जिम्मेदारी दी है। मंत्रिमंडल विस्तार मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है।" यह घोषणा बजट सत्र से ठीक दो दिन पहले आई है, जो इस विस्तार के समय को और महत्वपूर्ण बनाती है।
वर्तमान में बिहार मंत्रिमंडल में कुल 30 मंत्री हैं, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दो उप-मुख्यमंत्री शामिल हैं। बीजेपी के पास 16 मंत्री हैं, जिसमें उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा भी शामिल हैं, जबकि जेडीयू के पास 13 मंत्री हैं, जिसमें नीतीश कुमार भी हैं। इसके अलावा, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) से एक और एक निर्दलीय विधायक भी मंत्रिमंडल में हैं। बिहार विधानसभा की 243 सीटों के आधार पर अधिकतम 36 मंत्री हो सकते हैं, यानी अभी छह पद खाली हैं।
खबरों के मुताबिक, यह विस्तार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश सरकार का आखिरी मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि बीजेपी कोटे से विधायक संजय सरावगी, राजू सिंह, अवधेश पटेल, जिबेश कुमार और अनिल शर्मा को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। यह चयन जातिगत समीकरणों को साधने और चुनावी तैयारियों को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
कुल मिलाकर, यह विस्तार सत्तारूढ़ गठबंधन (एनडीए) के लिए एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जिसका लक्ष्य न केवल सरकार में खाली पदों को भरना है, बल्कि आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक संतुलन और जनता के बीच संदेश को मजबूत करना भी है।