हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आवार कुत्तों को लेकर फैसला सुनाया है। जिसमें पकड़े गए Stray Dogs को छोड़ने के आदेश जारी किए गए, लेकिन साल 1832 में आवारा कुत्तों को खुलेआम मारने के विरोध में दंगा हुआ था। पढ़ें पूरी खबर...
Stray Dogs: इन दिनों देश में चर्चा स्ट्रे डॉग्स के आतंक पर हो रही है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि जिन डॉग्स को पकड़ा गया है। उन्हें नसबंदी और टीकाकरण के बाद ही छोड़ा जाना चाहिए, सिवाय उन कुत्तों के जो रेबीज से संक्रमित हैं या जिनका व्यवहार आक्रामक है। वहीं, उच्चतम न्यायालय ने सार्वजनिक जगहों पर कुत्तों को खाना खिलाने पर पाबंदी लगा दी है। लेकिन, एक समय कुत्तों को मारने पर बंबई की सड़कों पर दंगे हुए थे। पारसी समुदाय के लोगों ने डॉग्स को बचाने के लिए सड़कों पर खून बहाया था।
साल 1832 में ब्रितानिया हुकूमत के दौरान बंबई जोकि अब मुंबई के नाम से जाता है। वहां Stray Dogs को लेकर पहला दंगा हुआ था। दरअसल, ब्रितानिया हुकूमत ने बंबई में Stray Dogs को नियंत्रित करने को लेकर एक नियम लागू किया था, जो 1813 से अस्तित्व में था। इस नियम के तहत गर्मियों के कुछ महीनों में (अप्रैल से सितंबर) डॉग्स को मारने की अनुमित थी। स्ट्रे डॉग्स को मारने पर आठ आना का इनाम भी घोषित किया गया। ब्रितानिया हुकूमत से उत्साहित होकर लोग स्ट्रे डॉग्स व पेट डॉग्स को मारने लगे। सरकार के इस फैसले का पारसी समुदाय के लोगों ने विरोध किया।
दरअसल, पारसी समुदाय में डॉग्स का धार्मिक महत्व है। उनकी जुरस्थी आस्था डॉग्स को चिन्वत ब्रिज यानी कि न्याय का पुल के रक्षक और मृत्यु के बाद आत्मा के स्थाई साथी के रूप में देखा जाता है। वहीं पारसी धर्म में अंत्येष्टि रस्म में भी डॉग की मौजूदगी जरूरी होती है। डॉग्स ही मृत्यु की पुष्टि करते हैं। इसके कारण कुत्तों की अंधाधुंध हत्या से पारसी समुदाय में आक्रोश फैल गया। 6 जून 1832 को पारसी समुदाय के पवित्र दिन था। इस दिन पारसी समुदाय के लोगों ने कुत्तों को मारने वाले लोगों पर हमला कर दिया। इसकी जद में अंग्रेज अफसर भी आए। अगले दिन पारसी समुदाय ने हड़ताल कर दी। यह विरोध इतना व्यापक था कि बंबई की आर्थिक गतिविधि ठप हो गई। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने कुछ पारसी नेताओं को गिरफ्तार किया था।