प्रियंका गांधी ने वायनाड में NEP और PM-SHRI को बच्चों का 'ब्रेनवॉश' और वैचारिक एकतरफा बताया। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पलटवार किया कि सुधार लागू होने पर कुछ लोगों को नाराजगी हो रही है।
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने गुरुवार को वायनाड में केंद्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और पीएम-श्री योजना को लेकर भाजपा पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि ये योजनाएं बच्चों का 'ब्रेनवॉश' करने के लिए हैं और इनमें वैचारिक एकतरफा झुकाव साफ दिखता है।
प्रियंका के बयान पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तुरंत पलटवार किया। अपने एक्स पर एक पोस्ट में प्रधान ने लिखा कि अब जब सुधार देश में लागू हो रहे हैं, तो कुछ लोगों यह बात रास नहीं आ रही है। सुधारों को स्वीकार करने के बजाय वह नाराजगी जता रहे हैं।
उन्होंने आगे लिखा कि अगर बच्चों को नवाचार, आलोचनात्मक सोच और भारत की विरासत पर गर्व से सशक्त बनाना 'वैचारिक' है, तो हां यह विचारधारा राष्ट्र निर्माण है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एनईपी और पीएम श्री (प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) पहल पर प्रियंका गांधी द्वारा की गई टिप्पणियां अज्ञानता और राजनीतिक अवसरवाद का स्पष्ट प्रदर्शन हैं।
इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना और भ्रामक बयान देकर, वह न केवल तथ्यों को तोड़-मरोड़ रही हैं, बल्कि भारत के शिक्षकों, शिक्षाविदों और नागरिकों के सामूहिक ज्ञान का भी अनादर कर रही हैं, जिन्होंने इन ऐतिहासिक सुधारों को आकार दिया।
उन्होंने आगे लिखा कि भारत 30 से अधिक वर्षों से ऐसे सार्थक शिक्षा सुधारों का इंतजार कर रहा था जो उसके युवाओं को 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए तैयार कर सकें।
वैश्विक ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक स्वर्गीय प्रो. के. कस्तूरीरंगन के मार्गदर्शन में तैयार की गई एनईपी 2020, अब तक की सबसे विस्तृत और समावेशी परामर्श प्रक्रियाओं में से एक का परिणाम थी।
इसमें देश भर के लाखों शिक्षकों, छात्रों और संस्थानों ने भाग लिया। यह नीति भारत के सभ्यतागत लोकाचार में दृढ़ता से निहित रहते हुए, समावेशिता, समानता, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर जोर देते हुए शिक्षा प्रणाली का आधुनिकीकरण करना चाहती है।
प्रधान ने अपने पोस्ट आगे कहा कि पीएम श्री योजना स्कूल की आधुनिकता को नैतिक शक्ति, तकनीक को परंपरा और नवाचार को समावेशिता के साथ मिलाते हैं।
ऐसी दूरदर्शी पहलों का विरोध करना नीति की आलोचना करना नहीं है; बल्कि उस भारत के विचार के विरुद्ध खड़ा होना है जिसे अब अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए पुराने राजनीतिक राजवंशों के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है। शायद यह बेचैनी इस तथ्य से उपजी है कि दशकों तक शिक्षा को राजनीतिक बयानबाजी और उपेक्षा तक सीमित रखा गया था।