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चीन ने ‘वॉटर बम’ से दिखाई आंख: हिमालय में ड्रैगन की बड़ी हिमाकत, अब भारत के ‘महा-बांध’ से होगा पलटवार!

India-China Water Dispute: तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के विशालकाय बांध निर्माण ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। ड्रैगन के इस 'वॉटर बम' का मुकाबला करने के लिए भारत ने अरुणाचल में महा-परियोजना शुरू कर दी है।

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Dec 18, 2025
चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर विशाल बांध बनाने का फैसला कर भारत की चिंता बढ़ाई। (फोटो: एआई, डिजाइन: पत्रिका)

Yarlung Tsangpo Mega Dam: चीन अपनी चालों और चालाकियों से बाज नहीं आ रहा है। वह भारत को परेशान करने या नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकता। अब तिब्बत के ऊंचे पहाड़ों से निकलने वाली यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी अब भारत और चीन के बीच नए तनाव (Brahmaputra River Dispute) का केंद्र बन गई है। चीन इस नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा और जटिल जलविद्युत प्रोजेक्ट (Yarlung Tsangpo Mega Dam) तैयार कर रहा है, जिसे भारत के लिए एक 'वॉटर बम' की तरह देखा जा रहा है। इससे हिमालय क्षेत्र में जल सुरक्षा (Water Security Himalayas)का संकट पैदा होने की आशंका है। करीब 168 अरब डॉलर की यह परियोजना न केवल पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।

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क्या है चीन का मेगा प्रोजेक्ट ? (China Great Bend Dam)

चीन तिब्बत में उस स्थान पर बांध बना रहा है जिसे 'ग्रेट बेंड' कहा जाता है। यहां नदी 2,000 मीटर की ऊंचाई से अचानक नीचे गिरती है। चीन इसी तीव्र ढलान का फायदा उठाकर सुरंगों और भूमिगत बिजली स्टेशनों का एक जाल बिछा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह अब तक की सबसे जोखिम भरी जलविद्युत प्रणाली होगी, क्योंकि यह इलाका भूकंप के प्रति बेहद संवेदनशील है।

भारत के लिए 'टाइम बम' क्यों है यह बांध ?

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू समेत कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि चीन इस पानी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है।

अचानक बाढ़ का खतरा मंडराता है

अगर चीन युद्ध या तनाव के समय बांध के गेट खोलता है, तो असम और अरुणाचल प्रदेश में विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।

पानी की किल्लत: चीन पानी रोक सकता है

चीन सूखे के मौसम में पानी रोक सकता है, जिससे भारत की कृषि, मत्स्य पालन और पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह तबाह हो सकता है।

भारत की जवाबी रणनीति: बांध का जवाब बांध से (India Strategic Counter-Dam)

चीन की इस 'जंग' का मुकाबला करने के लिए भारत ने भी अपनी कमर कस ली है। भारत अब अरुणाचल प्रदेश में अपनी सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना (11,200 मेगावाट) को तेज गति से आगे बढ़ा रहा है।

इस रणनीति के पीछे दो मुख्य उद्देश्य हैं:

जल संचय क्षमता: यदि चीन पानी छोड़ता है, तो भारत के पास अपना बड़ा जलाशय होगा, जो उस अतिरिक्त पानी को सोख सके और बाढ़ का खतरा कम कर सके।

कानूनी अधिकार: अंतरराष्ट्रीय जल नियमों के तहत, यदि भारत पहले पानी का उपयोग शुरू कर देता है, तो ऊपरी देश (चीन) के लिए नदी का प्रवाह पूरी तरह बदलना मुश्किल हो जाता है।

कूटनीतिक और पर्यावरणीय चिंताएं

ब्रह्मपुत्र का ज्यादातर पानी भारत की अपनी सहायक नदियों और मानसूनी बारिश से आता है, लेकिन चीन द्वारा मुख्य नदी के प्रवाह में छेड़छाड़ इसकी 'प्राकृतिक लय' को बिगाड़ सकती है। मेकांग नदी के मामले में भी चीन पर आरोप लग चुके हैं कि उसने निचले देशों मसलन वियतनाम व थाईलैंड की परवाह किए बिना पानी को नियंत्रित किया।

भारत अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध

भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) का कहना है कि सरकार चीन की हर हरकत पर पैनी नजर रख रही है। राज्यसभा में दिए गए बयानों के अनुसार, भारत अपने नागरिकों की सुरक्षा और आजीविका के लिए हर संभव सुधारात्मक कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है।

बांध बनाने की होड़ दोनों देशों के लिए जोखिम भरी

बहरहाल, हिमालय के इस संवेदनशील क्षेत्र में बांध बनाने की होड़ दोनों देशों के लिए जोखिम भरी है। पारदर्शिता की कमी और 'वॉटर वार' की यह स्थिति न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाल रही है, बल्कि करोड़ों लोगों का जीवन भी दांव पर लगा रही है। भारत के लिए अब अपनी जल सुरक्षा को प्राथमिकता देना और सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करना ही एकमात्र विकल्प बचा है।

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