न्यायमूर्ति एस. श्रीमती ने अधिवक्ता आर. प्रभु की याचिका पर 13 दिसंबर को शांतिपूर्ण उपवास की अनुमति दी थी।
मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ में तिरुपरमकुंड्रम पहाड़ी के दीप स्तंभ पर कार्तिगै दीपम जलाने को लेकर चल रहे विवाद के बीच तमिलनाडु पुरातत्व विभाग की एंट्री से मामला और संवेदनशील हो गया है। सरकार की इस कार्रवाई ने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। इसी बीच हाईकोर्ट की सशर्त अनुमति के बाद मयूर मंडपम के पास शनिवार को स्थानीय ग्रामीणों ने सांकेतिक उपवास रखा। अदालत के निर्देशों के तहत पूरे आयोजन पर कड़ी निगरानी रखी गई और पुलिस बल भी तैनात रहा।
गुरुवार को न्यायमूर्ति एस. श्रीमती ने अधिवक्ता आर. प्रभु की याचिका पर 13 दिसंबर को शांतिपूर्ण उपवास की अनुमति दी थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि उपवास में अधिकतम 50 लोग शामिल होंगे, समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक सीमित रहेगा, नारेबाजी नहीं होगी, केवल मंत्रोच्चार किया जा सकेगा और पूरे कार्यक्रम की वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी।
इससे पहले 10 दिसंबर को पुरातत्व विभाग की सात सदस्यीय टीम ने उपनिदेशक यतीश कुमार और सहायक निदेशक लोकनाथन के नेतृत्व में दीप स्तंभ और आसपास के क्षेत्र का सर्वे किया। अधिकारियों के अनुसार यह तकनीकी विश्लेषण के लिए था, हालांकि स्तंभ को ग्रेनाइट खंभा बताए जाने की खबर से विवाद गहराया। याचिकाकर्ता के वकील निरंजन एस. कुमार ने इसे अदालत में लंबित मामले के बीच नया साक्ष्य जुटाने की कोशिश बताया।
हुबली. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस और उसके सहयोगियों पर न्यायपालिका को धमकाने का गंभीर आरोप लगाया है। हुबली में शनिवार को जोशी ने कहा कि थिरुपरनकुंद्रम में दीप प्रज्वलन की अनुमति देने वाले फैसले के बाद किसी न्यायाधीश के खिलाफ केवल निर्णय के आधार पर महाभियोग लाना असहिष्णुता की पराकाष्ठा है।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी फैसले के कारण, न कि कदाचार या अक्षमता के आधार पर, इम्पीचमेंट की कोशिश की जा रही है। जोशी ने कहा कि यदि विपक्ष फैसले से असहमत था तो उसे अपील का रास्ता अपनाना चाहिए था। उन्होंने इसे न्यायपालिका पर दबाव बनाने की रणनीति बताते हुए विपक्ष पर संविधान का अनादर करने और ‘हिंदू-विरोधी मानसिकता’ का आरोप लगाया। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चुनावी बॉन्ड संबंधी फैसले से असहमति के बावजूद भाजपा ने कभी ऐसा कदम नहीं उठाया।