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Ground Report: पत्रिका ने की LoC पार के लोगों से बात, PoK से भारत के पक्ष में उठी आवाज

Ground Report: नियंत्रण रेखा (एलओसी) के निकट गुरेज विधानसभा क्षेत्र के गांव में चुनाव को लेकर जैसा उत्साह है, सीमा चार पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के गांवों में उससे ज्यादा कौतूहल और उम्मीदें। पढ़िए चकवैली (कश्मीर) से आनंद मणि त्रिपाठी की खास रिपोर्ट...

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Oct 01, 2024

Ground Report: नियंत्रण रेखा (एलओसी) के निकट गुरेज विधानसभा क्षेत्र के इस गांव में चुनाव को लेकर जैसा उत्साह है, सीमा चार पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के गांवों में उससे ज्यादा कौतूहल और उम्मीदें। इस कौतूहल और उम्मीद की कहानी नीलम वैली में उस पार रहने वाले तनवीर अहमद की जुबां से सहज ही निकलती है। फोन पर तनवीर कहते हैं - जम्मू-कश्मीर में लोग अब समझ रहे हैं, हालात पूरी तरह से बदल गए हैं। हम भी दुआ करते हैं कि किसी दिन हम पर भी हिंदुस्तान की हुकूमत होगी, इंशाअल्लाह…हम वोट डालकर अपनी सरकार बनाएंगे। चुनावी दौरे के दौरान मैंने एलओसी से सटे गांवों के कुछ जनप्रतिनिधियों से पीओके के गांवों के मुखिया और प्रमुख लोगाें के नंबर लेकर फोन से बातचीत की।

'दुआ है हम पर भी हिंदुस्तान की हुकूमत हो, हम भी वोट डालें'

केवल तनवीर ही नहीं, पीओके में रहने वाले करीब आधा दर्जन लोगों से चर्चा में सामने आया कि वे चुनाव को पीओके के भारत में शामिल होने से जोड़ कर देख रहे हैं। एकाधिक लोगों का यहां तक कहना है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके हिस्से की 24 सीटों पर ऑनलाइन वोटिंग करवानी चाहिए। सीमा पार के लोग जम्मू-कश्मीर के चुनाव में लोगाें की अच्छी भागीदारी से खुश हैं।

60 फीसदी वोट…इससे बड़ा रेफरेंडम क्या?

पीओके निवासी सज्जाद रजा कहते हैं कि उनके वहां ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो यह चाहते हैं कि पीओके भारत में शामिल होकर अपने भाइयों के साथ रहे। ऐसे लोगों के लिए जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे सूबाई हुकूमत (राज्य सरकार) के चुनाव पर नजर है। रजा का मानना है कि चुनाव में शांतिपूर्ण तरीके से करीब 60 फीसदी वोटरों की भागीदारी बड़ी बात है। जितना जल्दी पाकिस्तान इस बात को समझ ले अच्छा होगा। बिना किसी हिंसा और विरोध के यह चुनाव हो रहा है। चुनाव में एक गोली भी नहीं चली, इससे बड़ा रेफरेंडम क्या होगा? रजा चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में मजबूत सरकार से पीओके के भारत में मिलने की उनकी इच्छा पूरी हो सकती है।

आटा-दाल नहीं, जुल्म मिल रहा

पीओके में नीलम वैली के पास रहने वाले तनवीर अहमद कहते हैं कि यहां पाकिस्तान बात भले ही जहर उगले और बाशिंदों पर जुल्म करे लेकिन आटा तक नहीं खिला पा रहा है। भारत के जम्मू-कश्मीर में लोग अब समझ रहे हैं और इसीलिए पत्थरबाजी बंद है और लोग जम्हुरियत में हिस्सा ले रहे हैं।

पीओके के भविष्य का भी चुनाव

पीओके के दिरकुक के सरपंच आकिब राजपूत कहते हैं जम्मू-कश्मीर के चुनाव का पीओके के भविष्य का खास संबंध है। जम्मू-कश्मीर के लोगों की अपनी सरकार बनने से विकास कार्याें और युवाओं काे रोजगार मिलने में तेजी आएगी तो सीमा पार पीओके में असंतोष बढ़ेगा और भारत में शामिल होने की आवाज बुलंद होगी। आकिब कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में सरपंच काफी विकास काम करवा रहे हैं लेकिन पीओके में जुल्म और महंगाई के अलावा कुछ भी नहीं। इसीलिए पीओके के लोगों की नजरें चुनाव पर हैं।

हमारी ऑनलाइन वोटिंग करवा देते

दिरकुक के पास के ही दूसरे गांव के सरफराज खान कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके के लिए भी 24 सीटें सुरक्षित हैं तो भारत सरकार को यहां के लिए भी चुनाव कार्यक्रम तय करना चाहिए। सरफराज की मांग है कि चुनाव आनलाइन हो सकते हैं। भारत पीओके को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है तो दखल भी उसी तरह का देना चाहिए। पाकिस्तान अपने आप ही पागल हो जाएगा। इसके साथ ही भारत का क्लेम भी बढ़ता जाएगा।

उम्मीद है हिंंद का हिस्सा होंगे

दिरकुक के ही आदिल मगरे कहते हैं भारत को पीओके की वोटर लिस्ट ही जारी करनी चाहिए। पीओके में रह रहे 52 लाख लोगों का समर्थन दिखाया तो जा सके। यह बात भारत की स्थिति को और भी मजबूत करेगी। यदि जम्मू-कश्मीर से अगर 370 हट सकता है तो हमें पूरी उम्मीद है कि हम एक दिन हिंदुस्तान का हिस्सा होंगे।

370 के खात्मे से बढ़ा भारत का समर्थन

पीओके के लोगों से बातचीत में पता चला कि अनुच्छेद-370 के खात्मे से वहां का माहौल भी बदला है और भारत के प्रति समर्थन बढ़ा है। भारत समर्थक प्रदर्शनों व आंदोलन की संख्या भी बढ़ी है। पाक एजेंसियों के डर से पीओके निवासी अपना नाम न छापने के आग्रह के साथ बताते हैं कि पिछले चार-पांच साल में वहां के हालात बिगड़े हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई जुल्म कर रही है। हर दिन एक या दो बंदों को एनकाउंटर में मारा जा रहा है या गद्दार करार दिया जा रहा है, ताकि यह दिखा सके कि यह इलाका डिस्टर्ब है। जासूसी के आरोप में युवकों को पकड़ कर ले जाते हैं और वापस कब आएगा पता नहीं। बिजली-पानी-दवा की कमी और महंगाई ने कमर तोड़ रखी है। जब ये लोग जम्मू-कश्मीर के लोगाें से यहां हो रहे विकास की बात सुनते हैं तो भारत में शामिल होने की चर्चा आम है।

Updated on:
01 Oct 2024 12:36 pm
Published on:
01 Oct 2024 10:22 am
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