Israel Iran War: ईरान—इजरायल के बीच बढ़ते सैन्य तनाव को लेकर अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रो.मिलिंद कुमार शर्मा का कहना है कि तीसरे विश्व युद्ध का खतरा कहना अभी जल्दबाजी होगी।
Israel Iran War: ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते सैन्य तनाव को लेकर अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रो. मिलिंद कुमार शर्मा (एमबीएम विश्वविद्यालय, जोधपुर) का कहना है कि फिलहाल इसे तीसरे विश्व युद्ध की आहट कहना जल्दबाजी होगी। उनका मानना है कि वैश्विक शक्तियां भलीभांति जानती हैं कि युद्ध से किसी को लाभ नहीं होता, केवल विनाश होता है। रूस-यूक्रेन और इजरायल-गाजा संघर्ष इसके हालिया उदाहरण हैं, जहां वर्षों से अस्थिरता बनी हुई है।
प्रो. शर्मा के अनुसार, ईरान भले ही प्रतिक्रिया में इजरायल या अमेरिकी सैन्य अड्डों को निशाना बना सकता है, लेकिन इससे युद्ध का विस्तार होने का खतरा बढ़ जाएगा। हालांकि, भारत के लिए यह स्थिति आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकती है। खासकर तेल की कीमतों में वृद्धि, महंगाई और चाबहार पोर्ट जैसे निवेशों पर असर पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि भारत को अमेरिका, ईरान और इजरायल के बीच संतुलन साधते हुए अपनी कूटनीति का प्रयोग करना होगा। ऐसे हालात में भारत की ऊर्जा सुरक्षा और विदेश नीति की समझदारी ही उसे संभावित नुकसान से बचा सकती है।
ईरान प्रतिक्रिया में इजरायल के अलावा आसपास बहरीन व अन्य देशों में स्थित अमेरिकी अड्डों को निशाना बना सकता है, तेल परिवहन मार्ग हॉर्मुज जलडमरूमध्य में व्यवधान डाल सकता है। लेकिन ईरान सोच-समझकर ही ऐसा करेगा क्योंकि इससे युद्ध का विस्तार होने का खतरा है। यह संघर्ष लंबा नहीं चलेगा।
यह कहना कठिन है लेकिन चीन और रूस के सीधे ईरान को सैन्य समर्थन की संभावना कम है, कूटनीतिक समर्थन दे सकते हैं। यही हाल पाकिस्तान सहित मुस्लिम देशों का रह सकता है।
तेल की कीमतों में वृद्धि देश में ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती व महंगाई बढ़ा सकती है। भारत के लिए अपने नागरिकों की सुरक्षा और चाबहार पोर्ट जैसे रणनीतिक निवेश फिलहाल जोखिम में पड़ सकते हैं। भारत को कूटनीतिक दृष्टिकोण से अमेरिका-इजरायल व ईरान के साथ सूझबूझ से संतुलित संबंध रखने होंगे।
नीदरलैंड के हेग में 24 से 26 जून तक होने वाले नाटो शिखर सम्मेलन पर भी युद्ध की छाया नजर आएगी। अब तक साइबर सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता के अलावा रूस के साथ युद्ध में फंसे यूक्रेन को समर्थन जैसे विषयों पर सम्मेलन केंद्रित था। लेकिन अब ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमरीकी हमले और इसके बाद पश्चिम एशियाई देशों की संभावित प्रतिक्रिया से निपटने जैसी रणनीति शिखर सम्मेलन का हिस्सा हो सकती है।
गजब है बी-2 स्टील्थ बॉम्बर. रडार पर छोटी चिड़िया जैसे दिखते हैं
ईरान के परमाणु ठिकानों फोर्डों, नतांज और इस्फहान पर अमेरिका ने बी-2 स्टील्य बॉम्बर से 14 बंकर बस्टर बमों का गिराया है। इनमें से 12 बम फोर्डो पर गिराए और शेष दो नतांज पर। युद्ध क्षेत्र में यह इनका पहला इस्तेमाल है।
बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर बी-2 स्टील्थ बॉम्बर में एयर डिफेंस भेदने की अद्धुत क्षमता है। खास फ्लाइंग विंग डिजाइन और बेहद कम इंफ्रारेड के चलते यह सिर्फ 0.001 वर्ग मीटर का रडार क्रॉस सेक्शन बनाता है जो छोटी चिड़िया के आकार से ज्यादा नहीं होता। इसलिए पकड़ में नहीं आता।
बी-2 स्टोल्थ बॉम्बर की खासियत ये है कि इसे आसानी से टैक नहीं किया जा सकता। साथ ही यह बेहद उंचाई पर दूर तक उड़ान भर सकता है, जिससे एयर डिफेंस के लिए भी इसे भेद पाना बेहद मुशिकल है। साथ ही यह एक बार में 6 हजार नोटिकल मील (11100 किमी) की दूरी तय कर सकता है।
अमेरिका ने दावा किया है कि फोर्दो परमाणु साइट पर 30,000 (करीब 13600 किलो) पाउड के मैसिव ओर्डिनेंस पैनिटेटर या बंकर बस्टर बम गिराए है। इन बमों में की खूबी यह है कि यह 200 फीट से ज्यादा नीचे टारगेट को निशाना बना कर तबाह कर सकते है। यह बम जीपीएस गाइडेड होने के कारण सटीक निशाना साधते हैं।
अमेरिका हमले में पनडुब्बी से हॉहॉक सबसोनिक क्रूज मिसाइल के जरिए ईरान की नतांज और इस्फाहन साइट पर हमला किया गया। यह मिसाइल 1000 पॉड का वारहेड लेकर 1550 से 2500 किमी तक हमला कर सकती है।