Maharashtra Assembly Elections: भाजपा का महाराष्ट्र में चुनाव जीतने का माली-धनगर-वंजारी (माधव) जाति फॉर्मूला 1990 दशक से चल रहा है। पढ़िए शादाब अहमद की खास रिपोर्ट...
Maharashtra Assembly Elections: महाराष्ट्र की सियासत हरियाणा से जुदा है, लेकिन यहां भी हर दल व गठबंधन के अपने कोर वोटर्स है। इसके चलते यहां दिलचस्प जातिगत समीकरण बन रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच छोटी संख्या वाले वर्ग और समुदाय भी चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। यही वजह है कि भाजपा के नेतृत्व वाले महायुती अपने परंपरागत माली-धंगर-वंजारी (माधव) जाति समीकरण के साथ हरियाणा की तर्ज पर ओबीसी की ऐसी जातियों पर फोकस कर रही है, जिनकी संख्या कम जरूर है, लेकिन नतीजों को बदलने में अहम भूमिका निभा सकती है। वहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का सबसे बड़ा चुनावी हथियार दलित, धनगर मराठा-मुस्लिम और कुनबी (डीएमके) है। इसके साथ ही लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी सरकार की नीतियों से प्रभावित बेरोजगार, किसान व महिलाओं को साधने में जुटी हुई है।
भाजपा का महाराष्ट्र में चुनाव जीतने का माली-धनगर-वंजारी (माधव) जाति फॉर्मूला 1990 दशक से चल रहा है। इनकी जनसंख्या करीब 30 फीसदी से अधिक बताई जाती है। राम जन्मभूमि आंदोलन के जोर पकडऩे के बाद भाजपा ने गैर-कुनबी ओबीसी जातियों को लामबंद किया। ओबीसी की कई जातियां भाजपा-शिवसेना गठबंधन को चुनाव जिताने में मदद करती रहीं। हालांकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-शिवसेना उद्धव-एनसीपी शरद के नए समीकरण से भाजपा की नींव हिल गई। यही वजह है कि भाजपा माधव के साथ अब छोटे वर्गों को आकर्षित कर नए समीकरण बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। चुनाव घोषणा से पहले महाराष्ट्र सरकार ने कम संख्या वाले करीब डेढ़ दर्जन जातियों को ओबीसी में शामिल कर बड़ा दाव खेला है।
कांग्रेस व एनसीपी शरद गठबंधन की सियासत दलित, मुस्लिम, कुनबी और मराठा के समीकरण पर टिकी रही है। शिवसेना उद्धव का साथ मिलने पर महाअघाडी के इस समीकरण को नई धार मिल गई। मुंबई जोन में इस गठबंधन ने सेंधमारी कर दी। वहीं लोकसभा चुनाव में महाअघाडी धनगर जाति को भाजपा से तोड़ने में सफल हो गया। इसके अलावा मराठाओं ने भाजपा के खिलाफ जमकर वोट किया, जिससे महाराष्ट्र में दलित, धनगर मराठा-मुस्लिम और कुनबी (डीएमके) का नया फॉर्मूला बना। इससे महायुती की नाव मंझधार में फंस कर रह गई। लोकसभा चुनाव में महाअघाडी ने 48 में से 30 सीटें जीत ली। एक बार फिर विधानसभा में इसी फॉर्मूले को बढ़ाया जा रहा है। हालांकि हरियाणा के नतीजों को ध्यान में रखकर कम संख्या वाली जातियों के साथ समाजवादी पार्टी, वंचित बहुजन अघाडी, बहुजन समाज पार्टी समेत कई स्थानीय छोटे दलों पर नजर रखकर रणनीति बनाई जा रही है।