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संकट में हिमालय! Glacier पिघलने से बढ़ रहा खतरा, सैटेलाइट निगरानी से हुआ खुलासा

Melting Glacier: सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटियों में 33 हजार झीलों की निगरानी करने वाली सुहोरा के सैटेलाइट विश्लेषण में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण झीलों की संख्या बढऩे की पुष्टि हुई है।

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Mar 22, 2025

Climate Change in India: दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिख रहा है और इसका सबसे बड़ा असर हिमालय पर हो रहा है। बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे झीलों का आकार बढ़ रहा है। भारतीय भू अवलोकन कंपनी सुहोरा टेक्नोलॉजीज ने चेतावनी दी है कि ये झीलें कभी भी फट सकती हैं, जिससे भयानक बाढ़ आ सकती है। सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटियों में 33 हजार झीलों की निगरानी करने वाली सुहोरा के सैटेलाइट विश्लेषण में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण झीलों की संख्या बढऩे की पुष्टि हुई है।

ISRO ने पेश की रिपोर्ट

सुहोरा के मुताबिक हिन्दू कुश-काराकोरम-हिमालय (HKH) क्षेत्र में 1990 से अब तक हिमनद झीलों का क्षेत्रफल 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है और गंगा नदी के बेसिन में तो झीलों की संख्या 22 फीसदी तक बढ़ गई है। उधर, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की रिपोर्ट के मुताबिक 1984 के बाद से हिमालय की 27 फीसदी हिमनद झीलें फैल चुकी हैं, जिनमें 130 भारत में हैं। बढ़ते वैश्विक तापमान ने झील निर्माण को 5500 मीटर से अधिक ऊंचाई तक धकेल दिया है, जो ज्यादा ऊंचाई तक ग्लेशियरों के पीछे हटने को दर्शाता है।

76 फीसदी झीलों को खतरा

हिमालय की 76त्न से ज्यादा झीलें कमजोर चट्टानों से बनी हैं, जो कभी भी टूट सकती हैं। पिछले साल सिक्किम की दक्षिणी लोनाक झील हिमस्खलन और ज्यादा वर्षा के कारण टूट गई थी। इससे पांच करोड़ घन मीटर पानी सैलाब की शक्ल में निकला, जिससे 15 पुल और एक पनबिजली बांध नष्ट हो गया और 92 लोगों की मौत हो गई थी।

ऐसे किया गया अध्ययन

सुहोरा टेक्नोलॉजीज झील के मूवमेंट और ग्लेशियर की स्थिति पर नजर रखने के लिए सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर) और ऑप्टिकल इमेजिंग के जरिए नेपाल-चीन सीमा पर तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करती है।

50 साल में ग्लेशियरों से कम हुई बर्फ

संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं, अर्थात् उनका आकार कम हो रहा है। रिपोर्ट में बताया गया कि 1975 से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर पिछले 50 वर्षों में ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका महाद्वीप ने 9 हजार अरब टन बर्फ खो दी है। यह जर्मनी के आकार के विशाल बर्फ के टुकड़े के बराबर है, जिसकी मोटाई 25 मीटर है। विश्व मौसम संगठन ने कहा है कि पिघलने की वर्तमान दर से 21वीं सदी तक पश्चिमी कनाडा, अमरीका, स्कैंडिनेविया, मध्य यूरोप, काकेशस, न्यूजीलैंड के कई ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे।

Updated on:
22 Mar 2025 10:21 am
Published on:
22 Mar 2025 10:15 am
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