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मुसलमानों के लिए शिक्षा में आरक्षण मांगेगी NCP, अजित पवार ने किया ऐलान

Mharashtra: लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा ने महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय के लिए शिक्षा में आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया है। 

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Jun 12, 2024

लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा ने महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय के लिए शिक्षा में आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया है। मुस्लिम समुदाय तक पहुंच बढ़ाने और इस वर्ष सितम्बर-अक्टूबर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इस वर्ग का वोट हासिल करने का यह एनसीपी का नया पैंतरा है। एनसीपी ने लोकसभा की चार सीटों में से केवल एक सीट जीती है।

महायुति सरकार का हिस्सा है NCP

एनसीपी महायुति सरकार का हिस्सा है और वह मुस्लिम समुदाय को शिक्षा में कोटा देने के लिए भाजपा और शिवसेना के साथ बातचीत करने की योजना बना रही है, जिसने दलितों और आदिवासियों के साथ मिलकर महायुति के खिलाफ मतदान किया था। उन्हें डर था कि अगर 400 सीटों का आंकड़ा पार करने और केंद्र में सरकार बनाने के बाद भाजपा ने संविधान में बदलाव किया तो उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

मुस्लिम समुदाय को मिले शिक्षा में आरक्षण

महाराष्ट्र एनसीपी के मुख्य प्रवक्ता उमेश पाटिल ने कहा, "हम अपनी स्थिति पर अड़े हुए हैं कि मुस्लिम समुदाय को राज्य में शिक्षा में आरक्षण मिलना चाहिए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कांग्रेस-एनसीपी सरकार द्वारा मुस्लिम समुदाय को 5 प्रतिशत शैक्षणिक आरक्षण देने के फैसले को स्वीकार कर लिया था। हालांकि बाद में यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

मुस्लिम समुदाय के साथ हुई बैठक के बाद लिया फैसला

इलको लेकर रायगढ़ से नवनिर्वाचित सांसद सुनील तटकरे ने कहा, ''हमने कल पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की बैठक की है। बैठक के दौरान हमने उनका पक्ष सुना। अभी इस मामले को लेकर एक बैठक और की जाएगी। उसके बाद ही हम किसी नतीजे पर पहुंच पाएंगे।'' एनसीपी का यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले सप्ताह पार्टी विधायकों ने अजित पवार के साथ बैठक में कहा था कि पार्टी को उस्मानाबाद, बारामती और शिरूर में भारी हार का सामना करना पड़ा। वहां के सारे मुस्लिम मतदाताओं ने महा विकास अघाड़ी उम्मीदवारों के पक्ष में ही मतदान किया था। उन्होंने आगे बताया कि संविधान में बदलाव के बाद आरक्षण खत्म होने के डर से मुस्लिम, दलित और आदिवासियों ने महायुति के उम्मीदवारों के खिलाफ मतदान किया, जिससे महायुति को नुकसान हुआ।

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