छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि पैतृक संपत्ति में बेटियां भी जन्म से ही बेटों के समान अधिकार रखती हैं और उन्हें बराबर का हिस्सा मिलना अनिवार्य है।
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पैतृक संपत्ति के बंटवारे से जुड़े एक पुराने विवाद में ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि पिता की मृत्यु के समय बेटियां भी पुत्रों के समान सह-उत्तराधिकारी (कॉपरसेनर) होती हैं और उन्हें बराबर का हिस्सा दिया जाना अनिवार्य है। कोर्ट ने निचली अदालत के गलत बंटवारे को निरस्त करते हुए सभी पांच उत्तराधिकारियों को बराबर का हिस्सा देने का आदेश दिया है।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के विनिता शर्मा बनाम राकेश शर्मा निर्णय के आलोक में सुनाया गया। हाईकोर्ट ने वर्ष 2006 में हुए संपत्ति बंटवारे के आदेश को आंशिक रूप से रद्द करते हुए कहा कि बेटियां जन्म से ही सह-उत्तराधिकारी होती हैं और उन्हें बेटों के समान अधिकार प्राप्त हैं।
न्यायमूर्ति पार्थ प्रतीम साहू की एकलपीठ ने कहा कि संशोधित धारा-6 का पूर्ण प्रभाव लागू होगा और केवल काल्पनिक बंटवारे के आधार पर बेटियों को अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यह निर्णय कोरिया जिले के ग्राम पिपरा, तहसील बैकुंठपुर की पैतृक भूमि से जुड़े विवाद में सेकेंड अपील के दौरान दिया गया, जो सुप्रीम कोर्ट से रिमांड होकर दोबारा हाईकोर्ट पहुंचा था।