वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि नेहरू के कहने पर गाने से मां दुर्गा की स्तुति करने वाले छंदों को हटा दिया गया था।
राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् को 150 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस बीच, भाजपा ने कांग्रेस पर वंदे मातरम् को विकृत करने का आरोप लगाया है।
पार्टी का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दौर में मां दुर्गा की स्तुति करने वाले छंदों को राष्ट्रीय गीत से जानबूझकर हटा दिया गया था।
भाजपा के आरोप का कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने करारा जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि 1905 में बंगाल विभाजन से लेकर हमारे वीर क्रांतिकारियों की अंतिम सांसों तक वंदे मातरम् पूरे देश में गूंजता रहा।
इसकी लोकप्रियता से भयभीत होकर, अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन बन गया था।
खरगे ने बताया कि महात्मा गांधी ने 1915 में लिखा था- वंदे मातरम् गीत बंटवारे के दिनों में बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सबसे शक्तिशाली युद्धघोष बन गया था। यह एक साम्राज्यवाद-विरोधी नारा था। मैं बचपन में 'आनंद मठ' या इसके अमर रचयिता बंकिम के बारे में कुछ नहीं जानता था, तब भी वंदे मातरम् ने मुझे जकड़ लिया था और जब मैंने इसे पहली बार गाया तो मैं मंत्रमुग्ध हो गया। मैंने इसे अपनी शुद्धतम राष्ट्रीय भावना से जोड़ लिया।
खरगे ने अपने पोस्ट में कहा कि पंडित नेहरू ने 1938 में लिखा - पिछले 30 वर्षों से भी अधिक समय से यह गीत सीधे तौर पर भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है। ऐसे 'जनता के गीत' किसी के मन पर जबरन नहीं थोपे जाते। ये अपने आप ही ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं इसलिए एक साल पहले 1937 में उत्तर प्रदेश विधान सभा ने वंदे मातरम् का पाठ शुरू किया, जब पुरुषोत्तम दास टंडन इसके अध्यक्ष थे।
उसी साल, पंडित नेहरू, मौलाना आजाद, सुभाष चंद्र बोस, रवींद्रनाथ टैगोर और आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में कांग्रेस ने औपचारिक रूप से वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी।
खरगे ने कहा कि यह बेहद विडंबनापूर्ण है कि जो लोग (आरएसएस और भाजपा) आज राष्ट्रवाद के स्वयंभू संरक्षक होने का दावा करते हैं, उन्होंने अपनी शाखाओं या कार्यालयों में कभी वंदे मातरम् या हमारा राष्ट्रगान जन गण मन नहीं गाया।
इसकी बजाय वे नमस्ते सदा वत्सले गाते रहते हैं, जो राष्ट्र का नहीं बल्कि उनके संगठन का महिमामंडन करने वाला गीत है। आरएसएस 1925 में अपनी स्थापना के बाद से अपनी सार्वभौमिक श्रद्धा के बावजूद, वंदे मातरम् से परहेज करता रहा है। इसके ग्रंथों या साहित्य में एक बार भी इस गीत का उल्लेख नहीं मिलता है।
खरगे ने आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा- सभी जानते हैं कि आरएसएस और उसके सदस्यों ने राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीयों के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ दिया, 52 वर्षों तक राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया, भारत के संविधान का दुरुपयोग किया। उन्होंने बापू और बाबासाहेब आंबेडकर के पुतले जलाए।
दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी वंदे मातरम् और जन गण मन, दोनों पर अत्यधिक गर्व करती है। दोनों गीत कांग्रेस की प्रत्येक सभा और आयोजन में श्रद्धा के साथ गाए जाते हैं, जो भारत की एकता और गौरव के प्रतीक हैं।
उधर, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सीआर केसवन का कहना है कि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने वंदे मातरम् को ऐतिहासिक रूप से विकृत किया।
1937 में कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन में दुर्गा देवी की स्तुति वाले छंदों को हटाकर वंदे मातरम् का केवल एक संक्षिप्त संस्करण अपनाया गया।
उन्होंने इसे एक ऐतिहासिक भूल करार देते हुए कहा कि नेहरू ने 1937 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक पत्र भी लिखा था। इस पत्र में नेहरू ने कहा था कि वंदे मातरम् का देवी दुर्गा से कोई लेना-देना नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने इसे राष्ट्रीय गीत के लिए अनुपयुक्त भी कहा था।
बीजेपी लीडर ने आगे कहा कि युवाओं को यह जानना जरूरी है कि कैसे कांग्रेस ने अपने सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए दुर्गा देवी की स्तुति वाले छंदों को हटाकर वंदे मातरम् के संक्षिप्त रूप को अपनाया।
सीआर केसवन ने कहा कि 1 सितंबर, 1937 को लिखे पत्र में नेहरू ने कहा था कि वंदे मातरम् को देवी से जोड़ना सही नहीं है। साथ ही उन्होंने इसे राष्ट्र गीत के लिए भी उपयुक्त नहीं माना था।
हालांकि, नेताजी ने वंदे मातरम् के मूल संस्करण की वकालत की थी। लेकिन नेहरू अपने रुख पर कायम रहे। उन्होंने 20 अक्टूबर, 1937 को लिखे पत्र में दावा किया कि वंदे मातरम् की पृष्ठभूमि मुस्लिमों को नाराज कर सकती है।
सीआर केसवन ने कांग्रेस लीडर और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी भी नेहरू की हिंदू विरोधी मानसिकता को आगे बढ़ा रहे हैं।
राहुल ने पिछले साल कहा था कि हिंदू धर्म में एक शब्द है - शक्ति और हम शक्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं। गौरतलब है कि वंदे मातरम् को 150 वर्ष पूरे हो गए हैं और इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज साल भर चलने वाले कार्यक्रमों की घोषणा करेंगे।
बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम् पहली बार 7 नवंबर 1875 को साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ था। बाद में चटर्जी ने इसे अपने उपन्यास 'आनंदमठ' में शामिल किया, जो 1882 में प्रकाशित हुआ।
वंदे मातरम् को रवींद्रनाथ टैगोर ने संगीतबद्ध किया और यह देश की आत्मा बन गया। हालांकि, वंदे मातरम् को लेकर सियासी विवाद भी होते रहे हैं।
राष्ट्रीय गीत के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर इसे लेकर सियासत जारी है। राजस्थान और महाराष्ट्र के सभी स्कूलों में इसके गान के आदेश को लेकर बवाल मचा हुआ है।
महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी (SP) नेता अबू आजमी ने इस पर ऐतराज जताते हुए कहा है कि मुसलमान केवल अल्लाह के सामने झुकते हैं। वहीं, सीआर केसवन के दावे ने अब एक नए विवाद को जन्म दे दिया है।