तमिलनाडु के तुत्तुकुडी में 25 साल बाद दुर्लभ वैक्सन टाइगर बीटल देखा गया। तांबे-लाल रंग के शरीर और नीले धब्बों वाले पंखों वाला यह विलुप्तप्राय कीट क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और संरक्षण प्रयासों की सफलता का संकेत माना जा रहा है।
तमिलनाडु के तुत्तुकुडी के लाल रेत वाले तेरी वन में 25 साल बाद अति संकटग्रस्त प्रजाति वैक्सन टाइगर बीटल (लॉफाइरा सेरीना) को फिर से देखा गया है। इससे पहले वर्ष 2000 में अंतिम बार यह दिखाई दिया था। इस दुर्लभ बीटल को इस वर्ष कुदिरैमोझी तेरी वन के कई स्थानों पर शोधकर्ता के.पी. अरविंदन और जे. सैमसन किरुबाकरन ने देखा और उसकी तस्वीरें ली।
लॉफाइरा सेरीना एक छोटी प्रजाति का टाइगर बीटल है जो लॉफाइरा वंश से संबंधित है। इसे पहली बार 1986 में खोजा गया और 1987 में शोधकर्ताओं नविओक्स और अक्कियावत्ती ने इसे औपचारिक रूप से वर्णित किया। इसका आकार 9 से 10.5 मिलीमीटर के बीच होता है।
1986 से 2000 के बीच एकत्र किए गए ऐतिहासिक नमूने जर्मनी के म्यूनिख स्थित बवेरियन स्टेट कलेक्शन ऑफ जूलॉजी (जेडएसएम) में संरक्षित हैं। अक्टूबर 2000 के बाद कोई पुष्ट संग्रह या अवलोकन नहीं हुआ था। बीटल तेजी से चलने वाला और शिकारी प्रतीत होता है जो अन्य बीटल और कीटों का भोजन करता है।
यह कीट लाल रेत में घुलमिल जाता है। इसका शरीर तांबे जैसा लाल, पीले नारंगी रंग का इलायट्रा मोम जैसी चमक लिए होता है और उस पर पांच विशिष्ट कोबाल्ट नीले धब्बे होते हैं। टाइगर बीटल वॉच के संस्थापक वी. शरण ने इस पुनः खोज को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।