SC ने कहा- ये दोनों ही घटनाएं इस बात की कड़ी याद दिलाती हैं कि संवैधानिक विखंडन किस तरह राष्ट्रों को उथल-पुथल में धकेल सकता है।
Supreme court: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को 12 अप्रैल के आदेश पर राष्ट्रपति के संदर्भ में सुनवाई हुई। इस आदेश में राष्ट्रपति-राज्यपाल के लिए राज्यों के विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई थी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल और बांग्लादेश में हुए हिंसक प्रदर्शनों का जिक्र किया। सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व है। देखिए पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है। नेपाल में हमने देखा।
इस दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने बांग्लादेश का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हां बांग्लादेश में भी। इस दौरान उन्होंने पिछले साल बांग्लादेश में हुए विद्रोह का हवाला दिया, इस विद्रोह में 100 से ज्यादा लोग मारे गए और शेख हसीना की सरकार गिर गई थी। इसके बाद मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम प्रशासन को सौंप दिया।
जस्टिसों ने कहा कि ये दोनों ही घटनाएं इस बात की कड़ी याद दिलाती हैं कि संवैधानिक विखंडन किस तरह राष्ट्रों को उथल-पुथल में धकेल सकता है। SC ने यह टिप्पणी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा विधेयकों में देरी के आरोपी राज्यपालों का बचाव करते हुए की गई।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 1970 से 2025 तक केवल 20 विधेयक ही राष्ट्रपति के पास रखे गए थे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि 90% राज्य विधेयक एक महीने के भीतर ही पारित हो जाते हैं। तुषार मेहता की इस टिप्पणी पर मुख्य न्यायाधीश ने आपत्ति जताई।
सीजेआई ने तुषार मेहता से कहा कि हम आँकड़े नहीं ले सकते... यह उनके साथ न्याय नहीं होगा। हमने उनके आँकड़े नहीं लिए, तो आपके आँकड़े कैसे ले सकते हैं?" उन्होंने राज्य सरकारों द्वारा पहले पेश किए गए आंकड़ों पर आपत्ति जताई।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई अप्रैल के आदेश के बाद हो रही है। इसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर कार्रवाई करने की प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग की गई थी। यह आदेश राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा रोके गए सात विधेयकों को लेकर तमिलनाडु में डीएमके सहित राजभवनों और राज्य सरकारों के बीच बार-बार टकराव के बाद दिया गया था।