जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में 25 जनवरी 1990 को भारतीय वायुसेना के चार अधिकारियों की हत्या के मामले में पुलिस को बड़ी सफलता मिली है। मुख्य चश्मदीद गवाह ने टाडा कोर्ट में अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मुख्य शूटर के रूप में पहचाना।
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में रावलपोरा इलाके में 25 जनवरी, 1990 को भारतीय वायु सेना के 4 अधिकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
इस मामले में पुलिस को बड़ी कामयाबी मिली है। एक मुख्य चश्मदीद ने टाडा कोर्ट में अलगाववादी नेता यासीन मलिक की पहचान मुख्य शूटर के तौर पर की है।
अधिकारियों ने रविवार को कहा- जम्मू में एक स्पेशल टाडा कोर्ट के सामने अपराधी की पहचान की गई, जहां मलिक पर 25 जनवरी, 1990 को रावलपोरा श्रीनगर में हुए हमले का ट्रायल चल रहा है, इसमें चार जवानों की जान गई थी और 22 घायल हो गए थे।
उन्होंने आगे कहा- गवाह एक भारतीय वायु सेना का जवान और पीड़ितों का साथी है, उसने हमले में मलिक की मुख्य भूमिका की पुष्टि की है, जो 35 साल पुराने मामले में एक बड़ी कामयाबी है।
यासीन मलिक टेरर फंडिंग केस में उम्रकैद की सजा के बाद पहले से ही जेल में है, उस पर 1989 में रुबैया सईद के किडनैपिंग का भी ट्रायल चल रहा है, जो उस समय के केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी थीं।
जम्मू में टाडा कोर्ट के सामने शनिवार को दो खास चश्मदीदों ने मलिक और उसके तीन साथियों की मुख्य आरोपी के तौर पर साफ पहचान की।
उन्होंने बताया कि मलिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में उपस्थित हुआ। वहीं, जावेद मीर, मुहम्मद रफीक पहलू उर्फ सलीम नाना जी और शौकत बख्शी भी एकसाथ कोर्ट में पेश हुए।
अधिकारियों के मुताबिक, क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान दो गवाहों ने चारों को मुख्य आरोपी के तौर पर पहचानने की बात फिर से कही। एक तीसरे चश्मदीद जो भारतीय वायु सेना का एक स्टाफ मेंबर था, उसने गवाही दी कि मलिक हमले का मुख्य शूटर था।
चश्मदीद क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान अपने बयानों पर अड़े रहे। आरोपियों की पहचान होने के बाद, अगली सुनवाई 29 नवंबर को होनी है। प्रॉसिक्यूशन मलिक के लिए ज्यादा से ज्यादा सजा की मांग कर रहा है।
बता दें कि यासीन मलिक जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) का पूर्व प्रमुख भी है, जिसे आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों के लिए दोषी ठहराया गया है।
मलिक का नाम कश्मीरी पंडित नर्स सरला भट्ट का अपहरण, सामूहिक बलात्कार और बर्बर हत्या में भी आया था। जिनका शव "पुलिस मुखबिर" लेबल के साथ फेंका गया, जिससे कश्मीरी पंडितों का पलायन तेज हुआ।