संसद में गूंजा ऊंचाई 100 मीटर तय करने का मामला
नई दिल्ली। अरावली की ऊंचाई का मामला सोमवार को संसद में उठा। राज्यसभा में शून्य काल के दौरान अजय माकन ने 100 मीटर से ऊंची पहाड़ी को अरावली मानने की प्रस्तावित परिभाषा को इस पर्वतमाला पर ढाई अरब साल का सबसे बड़ा खतरा बताया। उन्होंने कहा कि यह अरावली पर प्रशासनिक संकट है और महाद्वीपों की टक्कर का सामना करने वाली पर्वतमाला का अस्तित्व खतरे में है। यह उत्तर एवं उत्तर पश्चिम भारत को रेगिस्तान बनने से बचाने वाली ग्रीन वाल को नष्ट करने का संकट पैदा करता है। अरावली की चट्टानें पानी को रिस कर जमीन के नीचे जाने देती हैं जिससे इस भू भाग में प्रति वर्ष प्रति हैक्टर लगभग 20 लाख लीटर पानी के रिचार्ज की क्षमता है। गुरुग्रा और फरीदाबाद जैसे जिलों के लिए यह ही ताजे पानी का एक मात्र स्रोत है। गैरकानूनी खनन से इस संसाधन की लूट चल रही है।
माकन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट सीईसी की 2018 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 1960 के दशक के अन्त से राजस्थान में अरावली का पच्चीस प्रतिशत हिस्सा अवैध खनन के कारण नष्ट हो चुका है। केवल एक अलवर जिले में 128 में से 31 पहाड़िया पूरी तरह गायब हो गई है। नई परिभाषा के अनुसार एक अरावली पहाड़ी को स्थानीय धरातल से 100 मीटर या उससे ऊंचा होना चाहिए। एफएसआई का आन्तरिक डेटा बताता है कि राजस्थान मे एक लाख सात हजार से ज्यादा अरावली पहाड़ियां हैं उसमें से केवल 1048 ही स्थानीय धरातल से सौ मीटर ऊपर हैं। राजस्थान में 99 प्रतिशत अरावली पहाड़ियां साफ हो जाएंगी क्योंकि वे अपनी कानूनी मान्यता और सुरक्षा को खो देंगी। यह एक पारिस्थितिकी आपदा होगी। थार रेगिस्तान पहले से ही लगभग हर दो वर्ष में एक किलोमीटर की गति से बढ़ रहा है। माकन ने कहा कि उत्तर एवं उत्तर पश्चिम भारत को धूल का कटोरा बनाने से बचाने के लिए स्थानीय धरातल के इस मानदंड को तुरन्त वापिस लिया जाए।