नई दिल्ली

पति की स्थिति समझना जरूरी…शादी के मामलों में आर्थिक जानकारी छिपाने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट

Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक पति-पत्नी के बीच चल रहे भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) के विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां आर्थिक जानकारी छिपाई जा रही हो और महिला आर्थिक रूप से पति पर निर्भर हो, वहां न्यायिक दृष्टिकोण न सिर्फ संवेदनशील बल्कि व्यावहारिक भी होना चाहिए।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी की मांग वाली याचिका स्वीकार की।

Delhi High Court: यह मामला एक महिला द्वारा अपने अलग रह रहे पति के खिलाफ भरण-पोषण की याचिका से जुड़ा है। महिला का आरोप है कि उसका पति उसे गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए अपनी असली आय और संपत्ति की जानकारी छिपा रहा है। उसने कोर्ट से अनुरोध किया था कि कुछ गवाहों को बुलाया जाए। ताकि पति द्वारा संपत्ति को बेचकर किए गए पैसों के लेन-देन का पता चल सके। पत्नी ने खासतौर पर बैंक अधिकारियों को बुलाने की मांग की थी। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस रविंद्र डुडेजा ने फैमिली कोर्ट के उस पुराने आदेश को रद्द कर दिया जिसमें महिला की याचिका को खारिज कर दिया गया था। अब हाई कोर्ट ने महिला को यह अनुमति दी है कि वह अपनी बात साबित करने के लिए गवाहों को बुला सकती है और जरूरी दस्तावेज कोर्ट में पेश करवा सकती है।

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पत्नी ने दिल्ली हाईकोर्ट में किया ये दावा

महिला ने यह भी दावा किया कि उसके पति ने नोएडा की एक संपत्ति बेचकर उससे मिले पैसे से अपने नाम पर नई संपत्ति शक्ति नगर में खरीदी, लेकिन इस पूरी लेन-देन को अपनी मां और भाई के खातों के जरिए किया ताकि सबूत न मिल सकें। महिला चाहती है कि बैंक खातों की जांच हो ताकि यह साबित हो सके कि असल में ये संपत्तियां पति की ही हैं और उसने जानबूझकर संपत्ति को दूसरों के नाम पर किया है। वहीं पति ने कोर्ट में कहा कि पत्नी का यह आवेदन सिर्फ मामले को लंबा खींचने की कोशिश है और जिन गवाहों को बुलाने की बात की जा रही है उनका कोई सीधा लेना-देना नहीं है।

दिल्ली कोर्ट ने खारिज कर दी पति की दलील

हालांकि हाई कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि भरण-पोषण की कार्यवाही में पति की वास्तविक आर्थिक स्थिति को समझना बहुत जरूरी है। इसलिए कोर्ट ने माना कि बैंक अधिकारियों और परिवार के सदस्यों को गवाही के लिए बुलाना जरूरी है। ताकि सच्चाई सामने आ सके। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला ने CrPC की धारा 311 के तहत जो आवेदन दिया है, वह कानून के मुताबिक है। यह धारा कोर्ट को यह अधिकार देती है कि किसी भी जरूरी गवाह को किसी भी समय बुलाया जा सकता है, चाहे मामला अंतिम बहस के चरण में ही क्यों न हो।

फैमिली कोर्ट के फैसले पर भी की टिप्पणी

अंत में हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट का केवल देरी और आवेदन की संख्या को आधार बनाकर याचिका खारिज करना सही नहीं था। न्याय प्रक्रिया में यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि किसी पक्ष को अपनी बात साबित करने का पूरा मौका मिले, खासकर जब मामला जीवनयापन जैसे जरूरी विषय से जुड़ा हो। यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहत भरा हो सकता है जो अपने हक के लिए अदालतों में लड़ रही हैं और जिनके सामने यह चुनौती होती है कि पति ने अपनी संपत्ति की असल जानकारी छुपा रखी है।

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