नई दिल्ली

सोनिया राहुल से जुड़ा, नेशनल हेराल्ड मामला… जानिए चार्जशीट आखिर क्यों खारिज?

दिल्ली की अदालत ने सोनिया, राहुल सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ ईडी की ओर से दायर चार्जशीट पर तकनीकी आधार पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया।

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राहुल गांधी और सोनिया गांधी (File Photo - ANI)

नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी सहित पांच नेताओं को राहत मिली है। दिल्ली की अदालत ने सोनिया, राहुल सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ ईडी की ओर से दायर चार्जशीट पर तकनीकी आधार पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील चारू माथुर से जानिए कोर्ट इस नतीजे पर कैसे पहुंचा।

क्या तकनीकी पेंच रहा इस मामले में?

यह मामला सुब्रमण्यम स्वामी की प्राइवेट कंप्लेंट के आधार पर शुरू हुआ। पीएमएलए (मनी लॉन्ड्रिंग) कानून के तहत ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के पास खुद से कोई मूल आपराधिक अधिकार नहीं होता। ईडी की कार्रवाई तभी संभव होती है जब पहले से सीबीआइ, पुलिस या कोई अन्य एजेंसी कोई कानूनी रूप से मान्य शेड्यूल्ड अपराध दर्ज हो। इसे प्रीडिकेट ऑफेंस कहा जाता है। कह सकते हैं कि जब तक कोई ऐसा अपराध साबित न हो जिससे अवैध कमाई (प्रोसिडिंग्स ऑफ क्राइम) बनी हो, तब तक मनी लॉन्ड्रिंग का मामला नहीं बन सकता। नेशनल हेराल्ड मामले में जो प्रीडिकेट ऑफेंस बताया गया, वह आईपीसी के तहत धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात से जुड़ा था। इसका संज्ञान मजिस्ट्रेट की ओर से सबसे पहले एक निजी शिकायत पर लिया गया था, जो एक निजी नागरिक की ओर से दायर की गई थी। बाद में यही मामला पुलिस केस में दिखा। लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का संज्ञान अपने आप नहीं लिया जा सकता। पीएमएलए की धारा 44 साफ कहती है कि मामले में अपने स्तर पर जांच पूरी होने के बाद ईडी को ही अभियोजन शिकायत दाखिल करनी होती है। इस मामले में जिस समय पीएमएलए की शिकायत दाखिल की गई थी, उस समय ऐसी कोई स्थिति नहीं बनी थी कि स्पेशल कोर्ट मनी लॉन्ड्रिंग मामले का संज्ञान ले सके। चाहे प्रीडिकेट ऑफेंस हुआ या नहीं हुआ। मोटे तौर पर यह ही समझना होगा कि एफआईआर ईडी के जरिए ही होनी चाहिए ना कि किसी प्राइवेट कंप्लेन पर। ईडी का अधिकारी जांच कर एफआइआर दर्ज करता है और केस आगे बढ़ता है। इस मामले में कोर्ट ने कहा है कि पीएमएलए के तहत एफआईआर जरूरी है। प्राइवेट कंप्लेन के आधार पर चार्जशीट नहीं हो सकती। यह अपने आप में एक ही केस था। कोर्ट ने इसका कॉग्निजेंस नहीं लिया है पर कहा है कि इसमें ईडी कोई आगे जानकारी देना चाहे तो दे सकती है।

क्या अब गांधी परिवार व अन्य आरोपी बरी हो गए?

नहीं, चार्जशीट तकनीकी रूप से खारिज हुए है और कोर्ट ने कहा है कि ईडी आगे जांच व जानकारी दे सकता है। इस मामले में दिल्ली पुलिस गत अक्टूबर में केस दर्ज कर चुकी है और इसी आधार पर अब ईडी नई चार्जशीट पेश कर सकती है या अपील कर सकती है। कोर्ट के गुण दोष पर निर्णय देने पर ही असली न्याय होगा।

क्या यह ईडी की चूक है?

बिल्कुल, इसमें बेसिक ग्राउंड वर्क नहीं किया गया। जो किया जाना जरूरी था। इसमें एजेंसी को अपने स्तर पर मामला दर्ज करना था और अभियोजन की तरफ से यह किया जाना था। यह ज्यूरिस्डिक्शनल एरर है और फाउंडेशन लेवल पर यह बेसिक एरर हुआ है। इससे पूरा मामला अटक गया है।

गलती किस स्तर पर रही?

ईडी सहित सभी एजेंसियों में अभियोजन की अलग से टीम रहती है। अभियोजन की एसओपी रहती है। कानूनी बिन्दुओं के सर्कुलर निकलते हैं। कई स्तरों पर सारे केस के हर बिन्दु पर जांच होती है। यह मामला सभी स्तरों पर लापरवाही दर्शाता है। इतनी बड़ी एजेंसी है उसमें और अधिक ध्यान रखना चाहिए।

इसका क्या असर देखते हैं?

केस में तो ईडी अपील कर सकती है। इस कोर्ट में और जानकारी पेश कर सकती है। पर ओवरआल देखें तो सरकारी अभियोजन में और अधिक सजगता के साथ काम किए जाने की जरूरत है। सरकारी प्रोसीक्यूशन में कन्वीक्शन रेट बहुत कम है। ईडी का भी कन्वीक्शन रेट कम है। इसका सीधा मतलब यही है कि अभियोजन के समय कमियां रह जाती हैं। और ऐसी कमियों के कारण ही मामलों में सफलता नहीं मिलती है।

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