-जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के प्रति राज्य सराकर की चाल-ढाल का विश्लेषण कर रहा केंद्र, जीरो टॉलरेंस नीति से आश्वस्त होने पर ही होगा निर्णय -केंद्रीय सूत्रों ने कहा- जल्दबाजी में फैसला लिया तो 370 हटाने के बाद से घाटी में आई ऐतिहासिक शांति और राज्य में हुए सुधारों पर फिर सकता है पानी
नवनीत मिश्र
नई दिल्ली। मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर को उचित समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा भले ही कई मौकों पर कर चुकी है, लेकिन इसमें जल्दबाजी के मूड में कतई नहीं है। आतंकवाद और अलगाववाद के प्रति उमर अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस सरकार की चाल-ढाल का उच्चस्तर पर विश्लेषण चल रहा है। केंद्र की अपेक्षाओं के अनुरूप राज्य सरकार की भी जीरो टॉलरेंस नीति से आश्वस्त होने पर ही इस दिशा में आगे की कार्रवाई होगी। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने यों तो सत्ता में आने के बाद से अपने पहले के रुख में कुछ परिवर्तन करते हुए आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने का दावा जरूर किया है, लेकिन अभी ऐसी बड़ी मिसाल पेश नहीं कर पाए हैं। सूत्रों के मुताबिक, उमर अब्दुल्ला सरकार भी केंद्र की जीरो टॉलरेंस नीति पर ईमानदारी से अमल करेगी, इसका भरोसा हो जाने पर केंद्र सरकार पूर्ण राज्य बहाली करने का निर्णय लेगी। पूर्ण राज्य बनते ही पुलिस और कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार के पास वापस आ जाएगी।
सूत्रों के मुताबिक, इस साल फरवरी में जम्मू-कश्मीर के तीन सरकारी कर्मचारियों को आतंकवादी गतिविधियों से नाता रखने के मामले में उपराज्यपाल(एलजी) मनोज सिन्हा ने बर्खास्त कर दिया था। यह कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत हुई। मुख्यमंत्री उमर अब्दु्ल्ला ने इसे मनमाने ढंगे से बर्खास्तगी करार देते हुए सवाल उठाए थे।
इसी तरह पिछले साल गांदरबल में हुए आतंकी हमले में 7 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसे आतंकवादी की जगह उग्रवादी हमला करार दिया था। उनके इस रुख पर भी सवाल खड़े हुए थे। राज्य की सत्ता में आने से पहले भी उमर अब्दु्ल्ला के कुछ बयानों पर सवाल खड़े होते रहे हैं। हालांकि, सत्ता में आने के बाद जरूर वो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में केंद्र के साथ मिलकर चलने की बात करते रहे हैं। जनवरी में वे वादे के मुताबिक शांतिपूर्वक चुनाव के लिए पीएम मोदी की तारीफ भी कर चुके हैं।
अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर इसके केंद्रशासित प्रदेश बनाकर मोदी सरकार ने बागडोर अपने हाथ में ली। मिशन मोड में विकास कार्यों को धार देकर घाटी से दिल्ली और जनता के दिलों की दूरी कम करने पर जोर दिया। आतंकवादियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई। नतीजा रहा कि 2019 से पहले की तुलना में आतंकवादी घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई। पत्थरबाजी की घटनाएं शून्य हो गईं।
कश्मीर में 40 साल में पहली बार 2024 में ऐसा चुनाव हुआ, जिसमें कहीं भी पुनर्मतदान की नौबत नहीं आई। न गोली चली और न ही आंसू गैस का इस्तेमाल हुआ। 60 प्रतिशत से ज्यादा वलोगों ने वोट डाले। शांति का वातावरण बना तो पहली बार घाटी में सिनेमा के नाइट शो शुरू हुए। पुराने मंदिरों की रौनक भी लौटी। दलित, वंचित हर तबके को विकास की मुख्यधारा से जुड़ने का मौका मिला। सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार अभी घाटी के हालात में और सुधार लाने के उपायों में जुटी है। जैसे ही राज्य सरकार के रुख से भी केंद्र सहमत हो जाएगी, पूर्ण राज्य का दर्जा देने का निर्णय होगा। एक वरिष्ठ अफसर ने कहा- जल्दबाजी में केंद्र कोई कदम नहीं उठाएगा। ऐसा होने पर जो कुछ अब तक हुआ है, उस पर पानी फिर सकता है।
जम्मू-कश्मीर चुनाव के बाद गठित उमर सरकार ने पहली कैबिनेट में राज्य का दर्जा बहाली का प्रस्ताव उपराज्यपाल को भेजा था। जिसे उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 19 अक्टूबर को गृहमंत्रालय को भेज दिया है। चूंकि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुर्नगठित किया गया था। इसलिए राज्य का दर्जा देने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में नए कानूनी बदलावों को मंजूरी देना होगा। इन बदलावों की राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद जब अधिसूचना जारी होगा, तब से जम्मू-कश्मीर फिर से पूर्ण राज्य बन जाएगा।