राइजोटोप प्रोजेक्टः कस्टम स्कैनर्स में ट्रिगर होगा अलार्म, पकड़ना होगा आसान केपटाउन. गैंडे की घटती आबादी और उनके सींगों की अंतरराष्ट्रीय तस्करी रोकने के लिए दक्षिण अफ्रीका में एक अनोखी और वैज्ञानिक पहल शुरू हुई है। यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्सरैंड ने परमाणु ऊर्जा अधिकारियों और वन्यजीव संरक्षणकर्ताओं के साथ मिलकर ‘राइजोटोप प्रोजेक्ट’ लागू किया है, जिसमें […]
राइजोटोप प्रोजेक्टः कस्टम स्कैनर्स में ट्रिगर होगा अलार्म, पकड़ना होगा आसान
केपटाउन. गैंडे की घटती आबादी और उनके सींगों की अंतरराष्ट्रीय तस्करी रोकने के लिए दक्षिण अफ्रीका में एक अनोखी और वैज्ञानिक पहल शुरू हुई है। यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्सरैंड ने परमाणु ऊर्जा अधिकारियों और वन्यजीव संरक्षणकर्ताओं के साथ मिलकर ‘राइजोटोप प्रोजेक्ट’ लागू किया है, जिसमें गैंडों के सींगों में रेडियोधर्मी आइसोटोप इंजेक्ट किए जा रहे हैं। ये आइसोटोप गैंडों के लिए पूरी तरह सुरक्षित हैं, लेकिन हवाई अड्डों और सीमाओं पर लगे रेडिएशन डिटेक्टरों से आसानी से पकड़े जा सकते हैं — भले ही उन्हें बड़े शिपिंग कंटेनरों में छिपाया गया हो।
इस तकनीक से न केवल अंतरराष्ट्रीय सीमा सुरक्षा मजबूत होगी, बल्कि तस्करों के लिए गैंडे का शिकार लगभग असंभव हो जाएगा। परियोजना की शुरुआत पांच गैंडों के सींगों में इंजेक्शन लगाकर की गई, जबकि पिछले साल एक अभयारण्य में 20 गैंडों पर ऐसा ही एक सफल परीक्षण किया गया था। वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि यह प्रक्रिया जानवरों के लिए पूरी तरह सुरक्षित है और अंतरराष्ट्रीय कस्टम स्कैनर्स में तुरंत अलार्म को ट्रिगर करती है।
क्या है ‘राइजोटोप प्रोजेक्ट’
‘राइजोटोप’ नाम 'राइनो (गैंडा)' और 'आइसोटोप' के मेल से बना है। आइसोटोप ऐसे परमाणु होते हैं जिनमें प्रोटॉन की संख्या समान, लेकिन न्यूट्रॉन की संख्या अलग होती है। रेडियोधर्मी आइसोटोप से सींगों में हल्की रेडिएशन क्षमता आ जाती है, जिससे वे स्कैनर से पहचाने जा सकते हैं। मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी जेम्स लार्किन के अनुसार, एक सींग में कम स्तर की रेडियोधर्मिता से भी अंतरराष्ट्रीय कस्टम्स में अलार्म बज सकता है।
वैश्विक संकट और संरक्षण की उम्मीद
20वीं सदी की शुरुआत में वैश्विक गैंडा आबादी लगभग 5 लाख थी, जो अब घटकर सिर्फ 27,000 रह गई है। दक्षिण अफ्रीका में करीब 16,000 गैंडे बचे हैं, पर हर साल लगभग 500 का अवैध शिकार होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्सरैंड ने निजी वन्यजीव पार्कों और राष्ट्रीय संरक्षण एजेंसियों से अपील की है कि वे इस तकनीक को अपनाकर गैंडों की रक्षा करें और तस्करी पर अंकुश लगाएं।