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गृहस्थ की शोभा दान से है, इससे पलट जाता है भाग्य : मुनि प्रमाण सागर

रेसकोर्स रोड स्थित मोहता भवन में पहुंचे जैन धर्मावलंबी इंदौर. गृहस्थ की शोभा दान से है। दान देने से भाग्य पलटता है। जीवन ऐसे बदलता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। तंगी की कितनी हालत हो यदि तुम दान करोगे तो तुम्हारा पक्का उत्थान होगा। इसमें कोई संशय नहीं।उक्त विचार मुनि प्रमाण सागर […]

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Aug 29, 2024

रेसकोर्स रोड स्थित मोहता भवन में पहुंचे जैन धर्मावलंबी

इंदौर. गृहस्थ की शोभा दान से है। दान देने से भाग्य पलटता है। जीवन ऐसे बदलता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। तंगी की कितनी हालत हो यदि तुम दान करोगे तो तुम्हारा पक्का उत्थान होगा। इसमें कोई संशय नहीं।
उक्त विचार मुनि प्रमाण सागर ने रेसकोर्स रोड़ स्थित मोहता भवन में व्यक्त किए। चातुर्मासिक सभा में मुनि ने कहा, दान पाप के प्रछालन, आसक्ति के निवारण, अंतराय में विनाश व उदारता के विकास के लिए होता है। यह भाव प्रत्येक व्यक्ति के मन में आना चाहिए। धर्म प्रभावना समिति के प्रचार प्रमुख राहुल जैन व अविनाश जैन ने बताया, बुधवार को मुनि प्रमाण सागर की आहार चर्या श्राविका आश्रम में संचालिका शशी दीदी के यहां हुई।

शंका समाधान शिविर

सवाल: सुधीर-सुमन जैन : वर्तमान के लोकतांत्रिक सामाजिक परिवेश में जैन धर्म में युवाओं की भागीदारी व समाज रक्षा के लिए क्या मानसिकता होनी चाहिए?
जवाब: लोकतांत्रिक और सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाने के लिए जैन युवाओं की पूरी भूमिका होनी चाहिए। जहां तक मानसिकता का सवाल है तो वह सकारात्मक और रचनात्मक होनी चाहिए। युवाओं के हृदय में सांस्कृतिक चेतना जागनी चाहिए।

सवाल: सुनील-सोमा जैन : पूर्व कर्माेदय को छोडक़र यदि ङ्क्षचतन या सोच अच्छी हो जाए तो आसानी से जीवन जी सकते हैं, लेकिन मुश्किल इस बात की है हर समय परिणाम एक जैसे या अच्छे नहीं रह पाते, इसके लिए क्या करें?
जवाब: इसके लिए हमें दो उपाय करने चाहिए। पहला हमारे परिणाम अच्छे बने रहे ऐसा प्रयास करें। दूसरा परिणाम बिगड़े नहीं ऐसी सावधानी रखें।

सवाल: चंदा-मनोहर भंडारी - जब भी हम किसी धार्मिक ग्रंथ का स्वाध्याय करते हैं और उससे जो ज्ञान प्राप्त होता है, क्या वह आयु पूर्ण होने पर कैरी फारवर्ड होता है?
जवाब: आज का युग टेक्नोलॉजी का युग है। शरीर एक कंप्यूटर की तरह है। यह शरीर हार्डवेयर है और इसके अंदर रहने वाला ज्ञान सॉफ्टवेयर है। जब तक इसके अंदर का प्रोग्राङ्क्षमग बना रहता है, तब तक हमारा ज्ञान काम करता है। हमारी जब मृत्यु होती है, उन क्षणों में पूरा सिस्टम ही बिगड़ जाता है। हम जब नया जन्म लेते हैं, तो नया ज्ञान जन्म लेता है।

सवाल: सुधीर बिलाला : अनंत इच्छाओं और उपलब्ध साधनों के बीच सामंजस्य कैसे बैठाएं?
जवाब: इच्छाएं अंतहीन हैं। उनको नियंत्रित करे बिना जीवन आगे नहीं बढ़ा सकते। एक बात अपने मस्तिष्क में बैठा लीजिए कि इच्छापूर्ति इच्छाओं से मुक्ति का साधन नहीं है। इसका नियंत्रण ही मुक्ति का आधार है।

सवाल: सुधीर-रजनी जैन : भाव भवनासनी है। भाव शुद्धि में भावों की प्रमुखता है, लेकिन धार्मिक क्रियाओं की भूमिका कितनी है?
जवाब: क्रियाओं नहीं विक्रियाओं से कोई झगड़ा होता है। हर व्यक्ति की अलग-अलग अस्था है और जिसकी जैसी आस्था है, उसका भाव भी उसी क्रिया में लगेगा।

Published on:
29 Aug 2024 12:58 am
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