शोध में यह भी पाया गया कि 2001 से 2014 के दौरान सर्प दंश के करीब 70 फीसदी मामले नौ राज्यों बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात में दर्ज किए गए। ज्यादातर मामले मानसून के दौरान सामने आते हैं, जब बिलों में पानी भरने से सांप बाहर निकलकर गांवों के खेतों और मकानों में पहुंच जाते हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सर्प दंश को अधिसूचित बीमारी घोषित कर सराहनीय पहल की है। अधिसूचित बीमारी नहीं होने से ऐसे मामलों को आधिकारिक तौर पर स्वास्थ्य सूचना पोर्टल पर ट्रैक नहीं किया जा सकता था। इसीलिए सर्प दंश से होने वाली मौतों के अधिकृत आंकड़े भी सामने नहीं आ पाते थे। अधिसूचित बीमारी घोषित होने के बाद सभी अस्पतालों को सर्प दंश के मामलों की जानकारी सरकार को देनी होगी। इससे सर्प दंश की समस्या को समझने और इसके खिलाफ रणनीति बनाने में मदद मिलेगी। इस साल मार्च में शुरू की गई 'राष्ट्रीय सर्प दंश रोकथाम और नियंत्रण योजना' (एनएपीएसई) के तहत 2030 तक देश में सर्प दंश से होने वाली मौतों को आधा करने का लक्ष्य है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक हर साल 30 से 40 लाख लोगों को सांप काटते हैं। इनमें से करीब 50,000 जान गंवा देते हैं। ये आंकड़े रिपोर्ट किए गए मामलों पर आधारित हैं। चूंकि देश के गांवों और दूर-दराज के इलाकों से सर्प दंश के ज्यादातर मामले रिपोर्ट नहीं होते थे, इसलिए सालाना मौतों का वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनियाभर में सर्प दंश से मौतों के बढ़ते आंकड़ों को लेकर चिंता जताता रहा है। चार साल पहले भारत और दूसरे देशों के कई वैज्ञानिकों के शोध में भारत में 2000 से 2020 तक सांप काटने से करीब 12 लाख लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया था।
शोध में यह भी पाया गया कि 2001 से 2014 के दौरान सर्प दंश के करीब 70 फीसदी मामले नौ राज्यों बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात में दर्ज किए गए। ज्यादातर मामले मानसून के दौरान सामने आते हैं, जब बिलों में पानी भरने से सांप बाहर निकलकर गांवों के खेतों और मकानों में पहुंच जाते हैं। चिंताजनक पहलू यह है कि गांवों में अंधविश्वास के कारण सांप काटने पर मरीज को फौरन अस्पताल ले जाने के बजाय झाड़-फूंक की शरण ली जाती है। सांप का जहर धीरे-धीरे चढ़ता है। झाड़-फूंक बेअसर होने के बाद जब तक मरीज अस्पताल पहुंचता है, काफी देर हो चुकी होती है। जहर के असर से पहले कई मरीजों की घबराहट में दिल के दौरे से मौत हो जाती है। सर्प दंश से मौतों की रोकथाम के लिए गांवों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके साथ देश में सर्प विष-रोधी दवाओं का उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है। फिलहाल इनका उत्पादन काफी कम है। सर्प दंश से बचाव के लिए लोगों में जागरूकता की भी दरकार है।