— डॉ. देव स्वरूप कुलगुरु, (बाबा आमटे दिव्यांग विवि, जयपुर)
देश में उदारीकरण की प्रक्रिया के तहत लगभग सभी क्षेत्रों में बदलाव आया। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रयास तो हुए लेकिन वर्तमान सरकार द्वारा विदेशी विश्वविद्यालयों को देश में संचालन की अनुमति प्रदान कर इस दिशा में प्रभावी पहल की गई है। दरअसल, कुछ समय पहले केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान द्वारा संसद में यह कहा गया कि वर्तमान में देश में तीन विदेशी विश्वविद्यालयों के संचालन की अनुमति दे दी गई है, जिसमें दो गुजरात में तथा एक गुरुग्राम (हरियाणा) में है तथा लगभग 50 विदेशी विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) के सम्पर्क में हैं अर्थात निकट भविष्य में काफी बड़ी संख्या में विदेशी विश्वविद्यालय देश के भिन्न-भिन्न भागों में संचालित होने लगेंगे।
अब प्रश्न यह है कि विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन से भारत जैसे विकासशील देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में युवाओं को गुणवतापूर्ण शिक्षा की उपलब्धता तथा बेहतर भविष्य के निर्माण की दृष्टि से यह पहल कितनी सार्थक होगी। शिक्षा मंत्री का कहना था कि लगभग 15 लाख भारतीय छात्र विदेश मे पढ़ रहे हैं। उनका यह मानना कि इन विदेशी विश्वविद्यालयों के देश में संचालन से युवाओं को उच्च अध्ययन के लिए विदेश नहीं जाना पड़ेगा, कई मायनों में सरकार की दूरदर्शिता को दर्शाता है।
जैसा कि विदित है विदेशी विश्वविद्यालय मूलत: अपनी कार्य संस्कृति, खुले वातावरण, वहां के प्रतिष्ठित शिक्षकों द्वारा अध्यापन तथा भिन्न-भिन्न देशों के छात्र-छात्राओं के साथ विचारों के आदान-प्रदान के अवसर के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण विषयों पर ज्ञान अर्जन का अवसर प्रदान करते हैं तथा उच्च शिक्षा की गुणवता तथा उच्च मानकों को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी उच्च रैंकिंग तथा शोध के क्षेत्र में उत्कृष्टता विदेशी छात्रों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। इसलिए यह उत्सुकता का विषय है कि क्या विदेशी विश्वविद्यालयों के देश में संचालन से उसी प्रकार की कार्य संस्कृति के अनुसार अध्ययन और अध्यापन संभव हो सकेगा तथा क्या हमारे संस्थान भी सही मायनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान तथा रैंकिंग के लिए प्रेरित होते हुए श्रेष्ठता के मानकों और नए मापदण्डों को स्थापित करने के लिए प्रेरित होंगे? निश्चित ही विद्यार्थियों के हितों की दृष्टि से इन विदेशी विश्वविद्यालयों को इस देश के निर्माण में उपयोगी बनाया जा सकता है।
भारत में इन विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन से यहां के प्रतिभाशाली युवाओं के पलायन को भी रोका जा सकता है तथा इन विदेशी विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर देश का युवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी प्रभावी भूमिका निभा सकता है। सामाजिक परिप्रेक्ष्य में यह निर्णय मध्यमवर्गीय परिवार, जो भारी ऋण लेकर अपने बच्चों को विदेशों मे उच्च शिक्षा के लिए भेजते हैं, के लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है। बशर्ते देश हित तथा छात्र हितों को ध्यान में रखते हुए उनके व्यवस्थित संचालन के लिए स्पष्ट नीति निर्धारण कर उन्हें संचालन की अनुमति दी जाए। यह सर्वविदित है कि पिछले कुछ वर्षों में देश के प्रतिष्ठित सरकारी एवं निजी उच्च शिक्षण संस्थान प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ शैक्षिक अनुबंध कर शिक्षा की गुणवत्ता तथा छात्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान मे रखते हुए निरन्तर प्रयासरत हैं तथा इस पहल से उनके लिए भी बेहतर संभावनाए पैदा हो सकेंगी।