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गणित में एआइ: स्कूली छात्रों के लिए मददगार या समझ पर खतरा

स्कूल स्तर पर छात्रों को दी जाने वाली गणितीय समस्याओं के स्वरूप में बदलाव नहीं होना चाहिए। स्वयं सवाल हल करने की प्रक्रिया से जो समझ विकसित होती है, उसकी भरपाई एआइ द्वारा दिए गए उत्तर को पढ़ लेने से नहीं हो सकती।

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Dec 22, 2025

- कृष्णन राजकुमार, सहायक प्राध्यापक जेएनयू, नई दिल्ली

आज के दौर में जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) आधारित गणित सॉल्वर तथा चैटबॉट कठिन से कठिन सवाल हल कर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय गणित ओलंपियाड जैसी प्रतियोगिताओं में भी क्षमता दिखा रहे हैं, तब राष्ट्रीय गणित दिवस (22 दिसंबर) के अवसर पर भारतीय छात्रों की वर्तमान और भावी पीढिय़ों के संदर्भ में यह विचार करना समीचीन है कि गणित के पढ़ाए और पढ़े जाने के तरीके में क्या और कैसे बदलाव होने चाहिए। परंपरागत रूप से भारतीय छात्र गणना क्षमता और संख्यात्मक कौशल में मजबूत माने जाते रहे हैं। भारतीय स्कूलों के पाठ्यक्रम में शुरुआती स्तर से ही मूल अवधारणाओं की समझ, मानसिक गणित, संगणनात्मक दक्षता और गणनाओं को स्पष्ट रूप से लिखने की क्षमता पर बल दिया जाता रहा है। यही कारण है कि जहां अधिकांश विकसित देशों में स्कूलों में कैलकुलेटर के उपयोग की अनुमति है, वहीं भारतीय विद्यालयों ने लंबे समय तक छात्रों के लिए कैलकुलेटर से दूरी बनाए रखी जाती है।

आज का मूल प्रश्न यह है कि क्या संसाधनों की सर्वसुलभता, एआइ आधारित समस्या-समाधान उपकरणों/चैटबॉट्स की बढ़ती मौजूदगी शिक्षण शैली या शिक्षकों द्वारा छात्रों को दी जाने वाली समस्याओं के स्वरूप को प्रभावित करेगी? स्कूल स्तर पर छात्रों को दी जाने वाली गणितीय समस्याओं के स्वरूप में बदलाव नहीं होना चाहिए। स्वयं सवाल हल करने की प्रक्रिया से जो समझ विकसित होती है, उसकी भरपाई एआइ द्वारा दिए गए तैयार उत्तर को निष्क्रिय रूप से पढ़ लेने से नहीं हो सकती। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि एआइ मॉडल लाखों समान समस्याओं पर हजारों अभ्यास, पुनरावृत्तियों के बाद ही तर्क करना सीखते हैं और समय के साथ उनके उत्तर बेहतर होते जाते हैं। इसलिए कम-से-कम उच्च माध्यमिक स्तर तक हमारे छात्रों को इस बुनियादी प्रशिक्षण से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। यदि हमारे विद्यार्थी सभी चरण छोड़कर सीधे एआइ के समाधानों पर निर्भर हो जाएंगे तो उनके मन-मस्तिष्क में गणित की मूल अवधारणाओं की समझ विकसित होने के अवसर ही समाप्त हो जाएंगे। जैसे कक्षा में कैलकुलेटर की अनुमति नहीं दी जाती, वैसे ही छात्रों को समस्याएं स्वयं हल करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, न कि एआइ पर निर्भर होने के लिए।

अक्सर दोहराया जाता है कि अब सीखने का लक्ष्य 'उत्तर निकालना' नहीं, बल्कि 'समस्या को समझना' होना चाहिए। यह बात उच्च स्तर के विद्यार्थियों के लिए तो सही है, लेकिन शुरुआती और माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए नहीं। हाइ स्कूल के बाद यूक्लिडीय ज्यामिति जैसे विषय आते हैं, जहां अवधारणाएं कुछ स्वयंसिद्धों से क्रमश: प्रमेय-दर-प्रमेय निर्मित होती हैं और आपसी अंतर्सबंध गहरे होते हैं। ऐसे विषयों में पाठ्यपुस्तकों के उपलब्ध संसाधनों और दोहरावपूर्ण परीक्षाओं के कारण रटंत-शिक्षा की संभावना अधिक रहती है। यहीं एआइ मददगार साबित हो सकता है- जैसे कठिन बातों को सरल भाषा में समझाने, अलग ढंग से समझाने या छात्र की समझ को परखने में। इसके अलावा शिक्षक एआइ की मदद से नई तरह के प्रश्न और रचनात्मक परीक्षाएं भी तैयार कर सकते हैं, बशर्ते एआइ द्वारा दिए गए उत्तरों की सावधानी से जांच कर ली जाए, क्योंकि एआइ से कभी-कभार त्रुटियां भी हो जाती हैं। यदि सही ढंग से उपयोग किया जाए, तो एआइ व्यक्तिगत सीखने को बढ़ावा दे सकता है, जिनका उपयोग शिक्षक कक्षा के भीतर और बाहर- दोनों जगह छात्रों की जिज्ञासा, प्रेरणा और सहभागिता बढ़ाने के लिए कर सकते हैं।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू मूल्यांकन प्रणाली से जुड़ा है। यदि परीक्षाएं केवल अंतिम उत्तर पर केंद्रित रहेंगी तो एआइ के व्यापक उपयोग के साथ सतही सीखने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है। इसलिए समाधान की प्रक्रिया, तर्क की स्पष्टता और वैकल्पिक विधियों को भी आकलन का अभिन्न हिस्सा बनाया जाना चाहिए। बदलते परिदृश्य में शिक्षक की भूमिका एक ऐसे मार्गदर्शक के रूप में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जो छात्रों को यह सिखा सके कि एआइ का उपयोग सीखने को गहरा करने के लिए कैसे किया जाए, न कि उससे बचने के लिए। स्पष्ट है कि एआइ न तो गणित शिक्षक का विकल्प है और न ही छात्र की मेहनत का। यह एक सहायक उपकरण है, जिसका उपयोग समझदारी से, सही स्तर पर और सही समय पर किया जाए। यही एआइ युग में गणित शिक्षा की वास्तविक चुनौती और संभावना दोनों है।

Updated on:
22 Dec 2025 01:47 pm
Published on:
22 Dec 2025 01:45 pm
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