ओपिनियन

गिरफ्तारी में मनमानी पर अंकुश का ठोस प्रयास

पुलिस सुधारों की दिशा में इसे ठोस प्रयास कहा जा सकता है, लेकिन अगले चरण के रूप में दुनिया के दूसरे देशों की तरह यह व्यवस्था भी की जानी चाहिए, जिसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों की जानकारी भी अधिरूप से दी जाए।

2 min read
Nov 09, 2025
ड्रग की तस्करी करने वाला पवन ठाकुर गिरफ्तार। (प्रतिनिधि फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में व्यवस्था दी है कि पुलिस व जांच एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले उसे लिखित में बताना पड़ेगा कि गिरफ्तारी का आधार क्या है। बिना लिखित कारण बताए पुलिस किसी को गिरफ्तार करती है तो गिरफ्तारी ही नहीं, बल्कि रिमांड भी अवैध होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि संविधान के अनुच्छेद २२(1) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को इस आधार बताने की आवश्यकता महज औपचारिता नहीं, बल्कि अनिवार्य संवैधानिक सुरक्षा है। सुप्रीम कोर्ट ने इन निर्देशों के बाद अब पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों की मनमानी पर अंकुश लगेगा।
पुलिस सुधारों की दिशा में इसे ठोस प्रयास कहा जा सकता है, लेकिन अगले चरण के रूप में दुनिया के दूसरे देशों की तरह यह व्यवस्था भी की जानी चाहिए, जिसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों की जानकारी भी अधिरूप से दी जाए। इसमें कोई संदेह नहीं कि कानून का डर बना रहना जरूरी है, लेकिन गिरफ्तारी की वजह बताए बिना किसी को प्रताड़ित करना और मनमानी धाराएं लगाकर कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाना जब पुलिस की कार्यशैली में शामिल होने लगे तो सुप्रीम कोर्ट के ऐसे निर्देश पीड़ितों को राहत देने वाले साबित होंगे। लिखित कारण बताने का मतलब है कि पुलिस को पहले गिरफ्तारी के वे आधार तय करने होंगे, जो संबंधित व्यक्ति को आसानी से समझ में आ जाएं। बड़ी राहत यह है कि अब हर आम आदमी के पास एक ढाल होगी। कोई पुलिसकर्मी किसी को गिरफ्तार ले जाने लगे तो यह सवाल तुरंत किया जा सकता है कि पहले इसका लिखित कारण बताया जाए। जाहिर है पुलिस अब प्रत्येक गिरफ्तारी को जायज ठहराने के लिए कागज-कलम का सहारा लेगी, लोग मनमाने ढंग से गिरफ्तार नहीं हो सकेंगे। व्यवस्था में सुधार की पहली सीढ़ी यही है कि पुलिस को कानून के दायरे में रहकर काम करने की बाध्यता होगी। पुरानी धाराएं या कोई भी प्रिवेंटिव एक्शन अब बिना ठोस लिखित आधार के नहीं चलेगा। इसका सीधा असर यह होगा कि छोटे-मोटे विवादों में गिरफ्तारी पर भी पुलिस को लिखित कारण बताना पड़ेगा और उसी कॉपी व्यक्ति को देनी पड़ेगी। यह कॉपी बाद में कोर्ट में सबूत बनेगी। पुलिस की हानियां झूठी होंगी तो स्वतः ही सामने आ जाएंगी।
गिरफ्तारी की वजह बताने और संबंधित को उसके अधिकार बताने की व्यवस्था दुनिया के दूसरे देशों में पहले से है। ब्रिटेन में अरेस्ट वारंट और नोटिस ऑफ राइट तुरंत दिया जाता है। अमेरिका में मिरिंडा राइट्स पढ़कर सुनाए जाते हैं और लिखित में दिए जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसा ही प्रावधान है। यह फैसला सिर्फ राहत वाला ही नहीं, बल्कि अधिकारों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का ठोस प्रयास है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे थाने का दरवाजा हर किसी के लिए डर का पर्याय नहीं रहेगा।

Updated on:
09 Nov 2025 02:30 pm
Published on:
09 Nov 2025 01:48 pm
Also Read
View All

अगली खबर