Puppies burnt alive West Bengal: कुत्ते के मासूम बच्चों को जिंदा जलाना केवल एक अपराध नहीं है, यह घटना दर्शाती है कि बतौर इंसान हम कितने क्रूर होते जा रहे हैं। यह समाज में कम होती संवेदनशीलत का उदाहरण है।
Howrah dog cruelty incident: पश्चिम बंगाल के हावड़ा में कुछ लोगों ने कुत्ते के 5 बच्चों को महज इसलिए जिंदा जला दिया, क्योंकि वह उनके रोने की आवाज से परेशान थे। यह केवल बेज़ुबानों के प्रति क्रूरता की खबर नहीं है, यह इंसानियत को शर्मसार वाली घटना है। लेकिन अफसोस कि इस घटना पर जितना शोर होना चाहिए था हुआ नहीं। वजह - मरने वाले बेजुबान हैं और मारने वाले इंसान। कुत्ते के काटने पर जितना हंगामा हमारे देश में होता है, उतना कुत्तों के प्रति होने वाली हिंसा पर नहीं। क्रूरता, तो क्रूरता होती है, फिर चाहे वह इंसान द्वारा इंसान पर हो या इंसान द्वारा बेज़ुबान पर। एक पर हंगामा और दूसरे पर खामोशी क्या सही है?
माना कि कुत्ता या दूसरा कोई जानवर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में योगदान न देता हो, लेकिन उसका अपना एक अस्तित्व है। वह हमारे समाज का हिस्सा है, उस समाज का जहां हर दूसरा व्यक्ति करुणा-प्रेम पर उपदेश देता है। जहां दिन की शुरुआत उन आराध्यों के नाम से होती है, जिन्होंने हर रूप में जीव दया का संदेश दिया है। जहां, बचपन से ही कमजोर की लाठी, बेसहारा का सहारा और बेजुबानों की आवाज बनने की सीख दी जाती है।
बेजुबानों के प्रति क्रूरता का न यह कोई पहला मामला है और न आखिरी। एसिड से जलाना, चाकू से गला रेतना, फांसी पर चढ़ाना, गाड़ी से कुचलना और लाठी-डंडों से पीट-पीटकर मौत के घाट उतारना, कुत्तों को इस तरह की यातनाएं देना अब आम हो गया है। 'कुत्तों का आतंक' दिखाने में व्यस्त रहने वाला हमारा मीडिया कभी तस्वीर के इस पहलू को दिखाने की कोशिश नहीं करता। सड़क पर बैठे-टहलते कुत्तों को भी आतंकी बता दिया जाता है, जैसे वह भारत के न हुए, पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर आए हैं। कुत्तों पर क्रूरता की हर घटना को क्रिया की प्रतिक्रिया बताया जाता है। यानी कुत्ते ने काटा, इसलिए उसे मारा गया। हावड़ा में मारे गए मासूमों ने भी क्या किसी को काटा था?
इस तरह की घटनाओं में महज जानवर का अंत नहीं होता, मानवता और इंसानियत भी दम तोड़ती हैं। हमारे मूल्य, हमारी सीख सब नष्ट हो जाते हैं। किसी को जिंदा जला देना, उसके दर्द में सुकून महसूस करना, हमारे क्रूर बनने की निशानी है। और इसे किसी भी तरह से जस्टिफाई नहीं किया जा सकता। जिन्हें ऐसे अपराध सही लगते हैं उन्हें समझना चाहिए कि क्रूरता कभी सिलेक्टिव नहीं हो सकती, आज बेजुबान को मारने वाला कल इंसान का भी दुश्मन बन सकता है। संवेदनशील से क्रूर बनने के बीच बस एक महीन रेखा होती है, एक बार इस रेखा को पार करने वाला किसी भी हद तक जा सकता है। समाज की सुरक्षा के नजरिए से भी ऐसी मानसिकता वाले खतरनाक हैं। लिहाजा, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई आवश्यक है, केवल कानून के स्तर पर नहीं बल्कि समाज के स्तर पर भी।
अमूमन इस तरह की घटनाएं चेन रिएक्शन का काम करती हैं। एक को देखकर दूसरा उत्साहित होता है। मौजूदा दौर में ऐसे मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। यह सच है कि डॉग बाइट की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन क्या वाकई उस रफ्तार से जितनी कि दिखाई जा रही है? क्या इन घटनाओं के कारण जानने के प्रयास हुए? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका सही जवाब किसी के पास नहीं और कोई जानना भी नहीं चाहता। इसमें कोई दोराय नहीं कि इंसान की जान सर्वोपरि है, लेकिन इसका यह भी मतलब भी नहीं होना चाहिए कि हम एक प्रजाति के समूल नाश पर आमदा हो जाएं। एक सभ्य, सुशील समाज के लिए करुणा गहने की तरह है, इसकी रक्षा हम सबका दायित्व है।