रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल करीब 1.42 लाख मिलियनेयर अन्य देशों में बसने जा रहे हैं, और 2026 तक यह संख्या 1.65 लाख तक पहुंच सकती है। चिंताजनक तथ्य यह भी है कि भारत से भी 3,500 उच्च नेटवर्थ वाले लोगों के बाहर जाने की संभावना जताई गई है।
दुनिया भर के दौलतमंद लोग अपने-अपने देशों को छोडक़र उन देशों में बसने की योजना बना रहे हैं जहां टैक्स का बोझ कम है, राजनीतिक स्थिरता है और जीवन की ऊंची गुणवत्ता है। हेनली एंड पार्टनर्स की ताजा रिपोर्ट में सामने आया यह तथ्य न केवल भारत, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक संकेत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल करीब 1.42 लाख मिलियनेयर अन्य देशों में बसने जा रहे हैं, और 2026 तक यह संख्या 1.65 लाख तक पहुंच सकती है। चिंताजनक तथ्य यह भी है कि भारत से भी 3,500 उच्च नेटवर्थ वाले लोगों के बाहर जाने की संभावना जताई गई है।
आर्थिक दृष्टि से समृद्ध लोगों का इस तरह से पलायन की कोई एक वजह हो ऐसा नहीं है। कई बार निवेश के अनुकूल माहौल नहीं मिलने की वजह से भी ऐसे लोग दूसरे देश का रुख करते हैं। देखा जाए तो इस तरह का पलायन किसी भी देश के लिए केवल आर्थिक नुकसान नहीं है, बल्कि प्रतिभा, निवेश और सामाजिक पूंजी का क्षरण भी है। इसलिए यह विषय सचमुच विचारणीय है कि आखिर कोई व्यक्ति, जिसने यहीं से संपत्ति बनाई, टैक्स दिया और प्रतिष्ठा हासिल की, अब किसी और देश को अपना स्थायी निवास बना लेना चाहता है। वस्तुत: यूएई जैसे देश जहां इनकम टैक्स नहीं है, गोल्डन वीजा जैसी योजनाएं हैं, और जहां राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिरता है, दुनिया भर के अमीरों के लिए चुंबक की तरह काम कर रहे हैं। अमरीका की ईबी-5 वीजा स्कीम भी इसी दिशा में बड़ा आकर्षण है। यह प्रवृत्ति दिखाती है कि दुनिया में केवल तकनीकी प्रतिभाओं के लिए ही नहीं, बल्कि दौलतमंदों को आकर्षित करने की दौड़ में भी देशों में प्रतिस्पर्धा होने लगी है। इस प्रवृत्ति को केवल माइग्रेशन तक ही मान लेना गलत होगा। यह एक प्लान बी भी है, जहां अमीर लोग संभावित जोखिमों, जैसे राजनीतिक अस्थिरता, टैक्स बढ़ोतरी या आर्थिक अनिश्चितता के खिलाफ खुद को सुरक्षित करने के विकल्प खोज रहे हैं। भारत जैसे देशों के लिए यह समय आत्मनिरीक्षण का है। हमें देखना होगा कि क्या हम अपने देश में ऐसा वातावरण दे पा रहे हैं, जो न केवल प्रतिभाओं को बनाए रखे बल्कि दौलतमंदों को भी यहां निवेश और जीवन बिताने के लिए प्रेरित करे। सवाल उन लोगों से भी है जो हमारे देश में अमीरी के पायदान चढऩे के बाद दूसरे देशों की आर्थिक समृद्धि में योगदान करने को उतारू हो रहे हैं। कर प्रणाली की सरलता, सरकारी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता, कानून का भरोसा और जीवन की गुणवत्ता ये सब ऐसे क्षेत्र हैं जहां सदैव ही सुधार की गुंजाइश रहती है। अमीरों के पलायन का यह रुझान यूं ही जारी रहा, तो भारत जैसे उभरते राष्ट्रों के लिए 'वेल्थ आउटफ्लो' केवल आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन में पिछडऩे की वजह बन सकती है। इस पलायन को गंभीरता से लेना होगा अन्यथा पूंजी के साथ सपने भी विदेशी जमीन पर जड़ पकड़ लेंगे।