लालच व अंधविश्वास दोनों के भले ही अलग-अलग पहलू हों, लेकिन परिणाम एक जैसे ही आते हैं। कुछ बेहतर होने की उम्मीद लगाने वालों को कोरी निराशा ही हाथ लगती है।
विज्ञान और तकनीक लोगों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई है, लेकिन जब लोग अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के जाल में फंसते दिखने लगें तो चिंता होना स्वाभाविक है। जाहिर है लालच और भय दोनों इसके लिए जिम्मेदार हैं। छत्तीसगढ़ के कोरबा में पांच लाख रुपए से ढाई करोड़ बनाने के लिए कराई गई तांत्रिक पूजा में तीन जनों की मौत की घटना भी ऐसे ही लालच की परिणति के रूप में सामने आई है। तांत्रिक क्रिया से रुपए बनाने का जो लालच दिया गया उसमें अंधविश्वास हावी होता नजर आया।
कम समय में अधिक कमाने के लालच में तांत्रिकों के झांसे में आने की यह कोई एक घटना नहीं है। आए दिन ऐसी खबरें सामने आती रहती हैं, जिनमें अंधविश्वास के कारण लोगों की जान पर बन आती है। चिंता की बात यह भी कि पढ़े-लिखे लोग तक अंधविश्वास को गले लगाने से नहीं चूकते। अनिष्ट का डर दिखाकर लोगों से धन ऐंठने वाले भी खूब सक्रिय है। इतना ही नहीं, तांत्रिक क्रिया करने वाले डर के साथ लोगों को यह भी ताकीद करते हैं कि समूची प्रक्रिया को गोपनीय रखना होगा, अन्यथा अच्छे की उम्मीद लगाने वालों का बुरा भी हो सकता है। यह बात सच है कि शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ लोग अंधविश्वास से दूर रहने लगे हैं लेकिन संतान, धन की प्राप्ति और कर्ज से मुक्ति के दावे करने वाले कथित तांत्रिक लोगों को अपने मायाजाल में फंसा ही लेते हैं। यही नहीं, तंत्र-मंत्र के फेर में लोग अपने प्रियजन की हत्या करने से भी नहीं चूकते। यह जानते-बूझते कि कानून का शिकंजा उन्हें जेल में पहुंचा देगा। इंसान को इंसान नहीं समझने की दुष्प्रवृत्ति ही कोरबा के इस घटनाक्रम जैसे अपराधों को जन्म देने वाली बनती है।
इस मामले में पुलिस ने गिरफ्तारियां भी की हैं। कुछ और ऐसे मामलों का खुलासा भी हो सकता है, लेकिन यह सवाल सिर्फ कोरबा का ही नहीं, बल्कि देशभर का है जहां लोग ऐसे ढोंग व ढकोसलों के चक्कर में फंस जाते हैंं। ऐसा इसलिए भी होता है कि टोने-टोटकों के पीछे लोगों को ऐसा लगता है कि उनके दुख और दर्द पलभर में दूर हो जाएंगे। अंधविश्वास के फेर में फंसने वाले अपने दर्द व समस्या को किसी से भी साझा नहीं करते और ढोंगियों के जाल में फंस जाते हैं।
लालच व अंधविश्वास दोनों के भले ही अलग-अलग पहलू हों, लेकिन परिणाम एक जैसे ही आते हैं। कुछ बेहतर होने की उम्मीद लगाने वालों को कोरी निराशा ही हाथ लगती है। जान-माल के नुकसान की नौबत आती है सो अलग। ऐसे में शिक्षा ही एकमात्र ऐसा माध्यम है, जिसके जरिए बदलाव की बयार आ सकती है। स्कूली स्तर से ही अंधविश्वासों से दूर रहने की सीख दी जानी चाहिए। साथ ही टोने-टोटकों और अंधविश्वास के खात्मे का सबसे बेहतर तरीका यही है कि हर बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा जाए। सोच में यह बदलाव जनजागरूकता से ही आ पाएगा। कानून को भी सख्ती अपनानी होगी, जिससे ऐसे मामलों पर अंकुश लग सके।